उच्चतम न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ 1.47 लाख करोड़ रूपए के समेकित सकल राजस्व (एजीआर) की अदायगी के न्यायिक आदेश पर अमल नहीं करने पर शुक्रवार को कंपनियों को नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमनना कार्यवाही की जाये। न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की कि ''क्या इस देश में कोई कानून नहीं बचा है?''
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश पर अमल नहीं किये जाने पर कड़ा रूख अपनाया और दूरसंचार विभाग के डेस्क अधिकारी के एक आदेश पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। इस अधिकारी ने समेकित सकल राजस्व के मामले में न्यायालय के फैसले के प्रभाव पर रोक लगा दी थी।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि डेस्क अधिकारी ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और अन्य सांविधानिक प्राधिकारियों को पत्र लिखा कि वे दूरसंचार कंपनियों और अन्य पर इस रकम के भुगतान के लिये दबाव नहीं डालें और यह सुनिश्चित करें कि उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो।
पीठ ने समेकित सकल राजस्व की बकाया राशि के भुगतान के लिये और समय देने का अनुरोध करने वाली वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान इस घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि कोई डेस्क अधिकारी इस तरह का आदेश कैसे दे सकता है कि जो शीर्ष अदालत के फैसले के प्रभाव पर रोक लगाता है।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ''एक डेस्क अधिकारी उच्चतम न्यायालय के आदेश के बारे में ऐसा कैसे कर सकता है। क्या यह देश का कानून है। क्या आप अदालतों से इसी तरह का आचरण करते हैं।''
पीठ ने कहा, ''हमें नहीं मालूम कि यह बेहूदगी कौन कर रहा है। कौन इसका सृजन कर रहा है? क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है? मैं वास्तव में बहुत दु:खी हूं। मैं महसूस करता हूं कि मुझे इस न्यायालय और इस व्यवस्था में काम नहीं करना चाहिए। मैं बहुत आहत हूं। मैं यह सब पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं।''
उन्होंने कहा, ''मैं इस तरह से नाराज नहीं होता हूं लेकिन इस व्यवस्था और देश में काम करने को लेकर मैं हैरान हूं।''
सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष इस घटनाक्रम पर खेद व्यक्त किया और कहा कि डेस्क अधिकारी ऐसा नहीं कर सकता। पीठ ने सवाल किया, ''देश के सालिसीटर जनरल के नाते क्या आपने डेस्क अधिकारी से इसे वापस लेने के लिये कहा? इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हम इस तरह से काम नहीं कर सकते। यदि आपके डेस्क अधिकारी की यह धृष्ठता है तो उच्चतम न्यायालय को बंद ही करना चाहिए। खबरें प्रकाशित हो रही हैं। यह सब कौन प्रायोजित कर रहा है?''
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ''मैं कभी अपने बारे में परवाह नहीं की। आप मुझे नहीं समझते, एक इंच भी नहीं। आपका डेस्क अधिकारी उच्चतम न्यायालय के आदेश पर रोक लगा रहा है। क्या वह उच्चतम न्यायालय के ऊपर है? कैसे?''
पीठ ने कहा, ''हमे इस व्यक्ति (डेस्क अधिकारी) और दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करनी होगी। यह किस तरह का आचरण कर रहीं हैं? हमने इनकी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं और एक पाई भी अभी तक जमा नहीं करायी गयी है। डेस्क अधिकारी हमारे आदेश पर रोक लगा रहा है। हम न्यायपालिका , इस देश और इसकी व्यवस्था की सेहत को लेकर चिंतित हैं।''
मेहता ने पीठ से अनुरोध किया इस मामले की सुनवाई टाल दी जाये और तत्काल कार्रवाई नहीं की जाये। उन्होंने कहा कि वह डेस्क अधिकारी के बारे में स्पष्टीकरण दाखिल करेंगे। पीठ ने कहा, ''किस तरह की अर्जी दाखिल की जा रही है? किस तरह के उल्लेख किये जा रहे हैं? यदि आप हमसे बचना चाहते हैं, आप ऐसा कीजिए और हम इससे अलग हो जायेंगे।''
पीठ ने कहा कि दूरसंचार कंपनियों ने उसके आदेश की अवहेलना की है और इससे पता चलता है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के प्रति उनमें जरा भी सम्मान नहीं है। शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल को लिखे डेस्क अधिकारी के पत्र का जिक्र करते हुये कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि इन कंपनियों को उपकृत करने का तरीका है। इस तरह का आदेश डेस्क अधिकारी नहीं दे सकता है।
पीठ ने सभी दूरसंचार कंपनियों और संबंधित कंपनियों के प्रबंध निदेशकों और निर्देशकों को इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 मार्च को उसके समक्ष पेश होने और यह जवाब देने का निर्देश दिया है कि उन्होंने अभी तक धनराश जमा क्यों नहीं की और उनके खिलाफ क्यों नहीं दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने दूरसंचार विभाग के इस डेस्क अधिकारी से भी जवाब मांगा है कि क्यों नही एक कृत्य के मामले में उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि देश में अधिकारियों को यह मालूम होना चाहिए कि उन्हें कहां रूकना है। दूरसंचार कंपनियां भुगतान के कार्यक्रम के बारे में दूरसंचार विभाग के साथ नये सिरे से बातचीत करना चाहती हैं। दूरसंचार विभाग ने उन्हें बकाया राशि के भुगतान के लिये नोटिस जारी किये थे।
न्यायमूर्ति मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कानूनी बकाया 1.47 लाख करोड़ रूपए की धनराशि का 23 तक भुगतान करने के अपने आदेश पर पुनर्विचार के लिये इन कंपनियों की याचिकाएं 16 जनवरी को खारिज कर दी थीं।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 24 अक्टूबर को अपने फैसले में कहा था कि कानूनी रूप से बकाया राशि की गणना में संचार कंपनियों के गैर दूरसंचार राजस्व को भी शामिल करना होगा। न्यायालय ने दूरसंचार विभाग के फैसले को बरकरार रखा था।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.