विदेश मंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं, लेकिन अगर पार्टी फैसला करती है तो वह इस पर विचार करेंगी.
बता दें कि सुषमा स्वराज ने इंदौर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उन्होंने पार्टी को अपनी मंशा साफ कर दी है, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी का ही होगा. हालांकि, सुषमा स्वराज के इस बयान पर अभी पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
#WATCH: "It is the party which decides, but I have made up my mind not to contest next elections," says External Affairs Minister and Vidisha MP Sushma Swaraj pic.twitter.com/ao8FIee2I0
— ANI (@ANI) November 20, 2018
गौरतलब है कि सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से ही लोकसभा सांसद हैं, वह पिछले काफी लंबे समय से अस्वस्थ हैं. अभी दो साल पहले ही उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था.
प्रखर वक्ता माने जाने वाली सुषमा स्वराज पार्टी की कद्दावर नेता होने के साथ-साथ एक लोकप्रिय मंत्री भी हैं. बतौर विदेश मंत्री वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहकर आम लोगों की काफी मदद करती हैं, जिसके कारण युवाओं में उनके प्रति क्रेज रहता है.
मोदी सरकार में सुषमा स्वराज की छवि काफी तेज तर्रार नेता वाली है. सोशल मीडिया पर भी उनकी लोकप्रियता काफी है. ट्विटर के माध्यम से सुषमा स्वराज मदद करने के लिए जानी जाती हैं. इतना ही नहीं, वैश्विक मंचों पर भी सुषमा स्वराज काफी बेबाकी से भारत का पक्ष रखती हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ का मंच हो या फिर कोई और, सुषमा स्वराज बेबाक तरीके से भारत का पक्ष रखती हैं और दुनिया के सामने भारत के कद को एक नया आकार देती हैं.
सुषमा स्वराज एक भारतीय राजनीति में बड़ा नाम रखती हैं. खासकर महिला राजनीति में. सुषमा स्वराज साल 2009 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं. इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही हैं.
अम्बाला छावनी में जन्मीं सुषमा स्वराज ने एस.डी. कॉलेज अम्बाला छावनी से बीए और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं. वर्ष 2014 में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. जबकि इसके पहले इंदिरा गांधी दो बार कार्यवाहक विदेश मंत्री रह चुकी हैं.