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सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने सोमवार 7 अक्टूबर को महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि वह मुंबई की आरे कॉलोनी में कोई और पेड़ न काटे। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद अब महाराष्ट्र सरकार 21 अक्टूबर तक मुंबई के आरे जंगल में और पेड़ नहीं काट सकेगी और न ही वहां दूसरी गतिविधियां कर सकेंगी।

गौरतलब है कि मेट्रो कार शेड के निर्माण के लिए लगभग 2,600 पेड़ों को गिराना था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जब तक फॉरेस्ट यानी एन्वायरन्मेंट बेंच का फैसला नहीं आ जाता, तब तक आरे में यथास्थिति बहाल रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को करेगा।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कानून के कुछ छात्रों द्वारा पेड़ों को काटने के विरोध में लिखे पत्र को जनहित याचिका मानते हुए सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए रविवार को स्पेशल बेंच का गठन भी कर दिया था।

याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आरे के जंगल को राज्य सरकार द्वारा ''अवर्गीकृत वन" समझा गया और पेड़ों की कटाई अवैध है। पीठ ने कहा कि आरे वन एक विकास क्षेत्र नहीं है और ना ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है, जैसा कि याचिकाकर्ता ने दावा किया है। पूरे रिकॉर्ड की जानकारी न होने की सॉलिसिटर जनरल की अपील पर गौर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मामले पर फैसले तक आरे में कुछ भी काटा नहीं जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आरे वन पर आदेश देते हुए महाराष्ट्र सरकार से कहा, ''अब कुछ भी ना काटें।" साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि आरे में पेड़ों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को रिहा कर दिया गया। बहरहाल, न्यायालय ने कहा कि अगर कोई गिरफ्तारी के बाद अब तक रिहा नहीं किया गया है तो उसे निजी मुचलका भरने के बाद रिहा कर दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब पूर्व नियोजित 1,200 पेड़ों की कटाई रुक गई है। सरकार वहां 1,500 पेड़ पहले ही काट चुकी है। आरे में मेट्रो शेड बनाने के लिए कुल 2,700 पेड़ काटने की योजना है। हालांकि, जस्टिस अरुण मिश्रा ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा, 'हम जो समझ रहे हैं, उसके मुताबिक आरे इलाका नॉन डिवेलपमेंट एरिया है लेकिन इको सेंसटिव इलाका नहीं है।'

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र सरकार की ओर से जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण की स्पेशल बेंच के सामने पेश हुए। उन्होंने बेंच को बताया कि जरूरत के पेड़ काटे जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से पूछा था कि वहां कितने पेड़ काटे जा चुके हैं, बताएं?

बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि पूरे आरे एरिया को जंगल घोषित किया जाए। इस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में मैटर पेंडिंग है इसलिए वह इसपर सुनवाई नहीं कर सकता। सरकार ने इस मामले में दो नोटिफिकेशन जारी किए थे। इनमें से एक के जरिए आरे एरिया को इको सेंसटिव जोन से अलग कर दिया गया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप हमें वह नोटिफिकेशन दिखाइए जिसमें आरे एरिया को इको सेंसेटिव जोन से बाहर किया गया था।

तत्काल सुनवाई से पहले, पेड़ों को काटने के विरोध में गिरफ्तार किए गए 29 कार्यकर्ताओं को रविवार को सशर्त जमानत दे दी गई।

पर्यावरण कार्यकर्ता उत्तरी मुंबई की आरे कॉलोनी में मुंबई मेट्रो रेल निगम लिमिटेड (एमएमआरसीएल) द्वारा पेड़ काटे जाने का विरोध कर रहे हैं। मेट्रो की रेक का डिपो बनाने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं। मेट्रो शेड के लिए आरे कॉलोनी के पेड़ों की कटाई का विरोध सामाजिक और पयार्वरण कार्यकर्ता के साथ कई जानी-मानी हस्तियां कर रही हैं।

बंबई उच्च न्यायालय ने पेड़ काटने के मुंबई नगर निगम के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को शुक्रवार (4 अक्टूबर) को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने शनिवार (5 अक्टूबर) को पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।