सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है. न्यायालय ने 10 से 50 साल की महिलाओं के लिए भी मंदिर के दरवाजे खोलने का फैसला लिया है. अदालत ने कहा कि सबरीमाला के नियम संविधान, के अनुच्छेद 14 और 25 का उल्लंघन करते हैं. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक चली सुनवाई के बाद एक अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया. पांच जजों की बेंच ने 4-1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में ये मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश ना करने दिया जाए.
Women of all age groups will now be allowed in Kerala's #Sabarimala temple https://t.co/AcBfH4pGkG
— ANI (@ANI) September 28, 2018
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में एक मत से फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया.
फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि आस्था के नाम पर लिंगभेद नहीं किया जा सकता है. कानून और समाज का काम सभी को बराबरी से देखने का है. महिलाओं के लिए दोहरा मापदंड उनके सम्मान को कम करता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्तों को अलग-अलग धर्मों में नहीं बांट सकते हैं.
Right to worship is given to all devotees and there can be no discrimination on the basis of gender: Chief Justice of India Dipak Misra. SC has allowed entry of all women in Kerala's #Sabarimala temple pic.twitter.com/jGdRMlH1l6
— ANI (@ANI) September 28, 2018
माहवारी की उम्र वाली महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर रोक के इस विवादास्पद मामले में सरकार अपना रुख बदलती रही है. केरल सरकार ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह उनके प्रवेश के पक्ष में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी महिलाओं के पक्ष में ही बातें कहीं थीं.
वैसे भारत में ऐसे कई मंदिर-मस्जिद और अन्य धार्मिक स्थल हैं जिनमें कपड़ों को लेकर, धार्मिक मान्यता आदि के चलते लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध है. ऐसे ही धार्मिक स्थलों में से एक है केरल का सबरीमाला मंदिर. यहां 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है.
सुप्रीम कोर्ट में यंग लॉयर्स एसोसिएशन की ओर इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर केस लड़ा जा रहा है. ऐसे में ज्यादातर यही बात सामने आ रही है कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण उनके पीरियड्स हैं. जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है. मंदिर के आख्यान में इसके पीछे कोई दूसरी ही कहानी है.
वेबसाइट 'फर्स्टपोस्ट' के लिए लिखे एक लेख में एमए देवैया इस आख्यान के बारे में बताते हैं. वे लिखते हैं कि मैं पिछले 25 सालों से सबरीमाला मंदिर जा रहा हूं. और लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध किसने लगाया है. मैं छोटा सा जवाब देता हूं, "खुद अयप्पा (मंदिर में स्थापित देवता) ने. आख्यानों (पुरानी कथाओं) के अनुसार, अयप्पा अविवाहित हैं. और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते."
माना जाता है कि अयप्पा किसी कहानी का हिस्सा न होकर एक ऐतिहासिक किरदार हैं. वे पंथालम के राजकुमार थे. यह केरल के पथानामथिट्टा जिले में स्थित एक छोटा सा राज्य था. वह महल जहां अयप्पा बड़े हुए वह आज भी है और वहां भी लोग जा सकते हैं. अयप्पा के सबसे वफादार लोगों में से एक थे वावर (मलयालम में बाबर को कहते हैं). यह एक अरब कमांडर थे. जिन्हें अयप्पा ने युद्ध में हराया था.
वावर की मान्यता आज भी है. माना जाता है कि इरूमेली मस्जिद में आज भी उसकी रूह बसती है. वह 40 किमी के कठिन रास्ते को पार करके सबरीमाला आने वाले तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है. सबरीमाला जाने वाला रास्ता बहुत कठिन है. जिसे जंगल पार करके जाना पड़ता है. साथ ही पहाड़ों की चढ़ाई भी है क्योंकि यह मंदिर पहाड़ी के ऊपर बना है. मुस्लिम भी इरूमेली की मस्जिद और वावर की मजार पर आते हैं. यह मंदिर के सामने ही पहाड़ी पर स्थित है.
सबरीमाला भारत के ऐसे कुछ मंदिरों में से है जिसमें सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र से अलग) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं. यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं. यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है. इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं. साथ ही यहां पर उन भक्तों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, जो मंदिर में ज्यादा बार आए होते हैं न कि उनको जिनकी जाति को समाज तथाकथित रूप से ऊंचा मानता हो.
इसके अलावा सबरीमाला आने वाले भक्तों को यहां आने से 40 दिन पहले से बिल्कुल आस्तिक और पवित्र जीवन जीना होता है. देवैया लिखते हैं कि इस मंदिर के जैसे रिवाज आपको देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे. क्योंकि यहां दर्शन के दौरान भक्त ग्रुप बनाकर प्रार्थना करते हैं. एक 'दलित' भी इस प्रार्थना को करवा सकता है और अगर उस ग्रुप में कोई 'ब्राह्मण' है तो वह भी उसके पैर छूता है.
देवैया लिखते हैं कि ऐतिहासिक अयप्पा के अलावा भी एक पुराणों में वर्णित पुरुष को भी उनके साथ जोड़ा जाता है. जो कहता है कि अयप्पा विष्णु और शिव के पुत्र हैं. यह किस्सा उनके अंदर की शक्तियों के मिलन को दिखाता है न कि दोनों के शारीरिक मिलन को. इसके अनुसार देवता अयप्पा में दोनों ही देवताओं का अंश है. जिसकी वजह से भक्तों के बीच उनका महत्व और बढ़ जाता है. और इसका पीरियड्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है.