करीब 600 कलाकारों, लेखकों, शिक्षाविदों, पूर्व न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों ने सरकार से नागरिकता (संशोधन) विधेयक वापस लेने की अपील करते हुए इसे भेदभावपूर्ण, विभाजनकारी और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताया है. इन लोगों ने लिखे एक खुले पत्र में इस बात पर जोर दिया है कि प्रस्तावित कानून भारतीय गणतंत्र के मूल चरित्र को आधारभूत रूप से बदल देगा और यह संविधान द्वारा मुहैया कराये गए संघीय ढांचे को खतरा उत्पन्न करेगा.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में इतिहासकार रोमिला थापर, लेखक अमिताव घोष, अभिनेत्री नंदिता दास, फिल्मकार अपर्णा सेन और आनंद पटवर्धन, सामाजिक कार्यकर्ताओं योगेंद्र यादव, तीस्ता सीतलवाड, हर्ष मंदर, अरुणा राय और बेजवाड विल्सन, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह और देश के पहले सीआईसी वजाहत हबीबुल्ला आदि शामिल हैं.
पत्र में लिखा है, 'सांस्कृतिक और शैक्षिक समुदायों से जुड़े हम सभी लोग इस विधेयक को विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक करार देते हुए निंदा करते हैं. देशव्यापी एनआरसी के साथ यह देशभर के लोगों के लिए अनकही पीड़ा लेकर आएगा. यह भारतीय गणतंत्र की प्रकृति को आधारभूत रूप से अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा. यही कारण है कि हम सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग करते हैं.'
सात घंटे से अधिक समय तक चली बहस के बाद लोकसभा ने सोमवार आधी रात को इस विधेयक को पारित कर दिया. इस विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है.
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.