देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू होने और असम में एनआरसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहली बार नॉर्थ-ईस्ट के किसी राज्य के दौरे पर जा रहे हैं। पीएम मोदी आज असम के बोडो समझौते को लेकर राज्य के कोकराझार में होने वाले एक समारोह में शिरकत करेंगे। इस मौके पर मोदी बोडो समझौते के बारे में लोगों को संबोधित करेंगे। समझौते पर 27 जनवरी, 2020 को नई दिल्ली में हस्ताक्षर किए गए थे। कोकराझार में प्रधानमंत्री के स्वागत की बड़ी तैयारियां की गई हैं।
कोकराझार में लोगों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए गुरुवार को सड़कों और गलियों में मिट्टी के दीए जलाए। ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन (एबीएसयू) ने कोकराझार में बाइक रैली भी निकाली। पीएम के स्वागत की जोरदार तैयारियां की गई हैं।
बीटीएडी (बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्स) जिलों- कोकराझार, बक्सा, उदलगुड़ी और चिरांग और पूरे असम के चार लाख से अधिक लोग इस कार्यक्रम में भाग लेंगे। इसमें राज्य के जातीय समूहों का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल है।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसकी कुछ तस्वीरें अपने ट्विटर पर शेयर की हैं, जिसमें दिख रहा है कि पीएम मोदी के दौरे से पहले कोकराझार दीयों की जगमगाहट से खिल रहा है।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के इस ट्वीट को शेयर करते हुए पीएम मोदी ने लिखा- 'थैंक्यू कोकराझार! मैं कल के कार्यक्रम का बेसब्री से इंतजार है।'
Thank you Kokrajhar! I am eagerly awaiting tomorrow’s programme. https://t.co/8oxrP0v969
— Narendra Modi (@narendramodi) February 6, 2020
पीएम ने गुरुवार को ट्वीट किया, 'मैं असम में दौरे को लेकर उत्सुक हूं। मैं एक जनसभा को संबोधित करने के लिए कोकराझार में रहूंगा। हम बोडो समझौते पर सफलतापूर्वक हस्ताक्षर किए जाने का जश्न मनाएंगे जिससे दशकों की समस्या का अंत होगा। यह शांति और प्रगति के नये युग की शुरूआत का प्रतीक होगा।'
बोडो समझौते पर हस्ताक्षर 27 जनवरी को सरकार द्वारा नैशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के चार धड़ों, आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और एक नागरिक समाज समूह के साथ किया गया था। इसका उद्देश्य असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में दीर्घकालिक शांति लाना है।
प्रधानमंत्री ने हाल के एक ट्वीट में हस्ताक्षर वाले दिन को 'भारत का एक बहुत खास दिन बताया था' और कहा था कि यह बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम लाएगा। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिनों में एनडीएफबी के विभिन्न धड़ों के 1615 से अधिक सदस्यों ने अपने हथियार सौंप दिये थे और मुख्यधारा में शामिल हो गए थे।
मोदी ने 26 जनवरी को 'मन की बात' कार्यक्रम में अपील की थी कि जो भी हिंसा के मार्ग पर हैं वे मुख्यधारा में लौट आयें और अपने हथियार डाल दें। मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच एक शिखर बैठक पिछले साल दिसंबर में गुवाहाटी में होनी थी लेकिन सीएए विरोधी प्रदर्शनों के चलते उसे रद्द कर दिया गया था। मोदी को हाल में गुवाहाटी में सम्पन्न 'खेलो इंडिया' खेलों के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन वह उसमें शामिल नहीं हुए।
क्या है बोडो विवाद
बोडो असम का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5 से 6 प्रतिशत है। लंबे समय तक असम के बड़े हिस्से पर बोडो आदिवासियों का नियंत्रण रहा है। असम के चार जिलों कोकराझार, बाक्सा, उदालगुरी और चिरांग को मिलाकर बोडो टेरिटोरिअल एरिया डिस्ट्रिक्ट का गठन किया गया है। बोडो लोगों ने वर्ष 1966-67 में राजनीतिक समूह प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम के बैनर तले अलग राज्य बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। यह विरोध इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत एनडीएफबी को गैर कानूनी घोषित कर दिया।
साल 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन ने एक बार फिर से बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। यूनियन के नेता उपेंद्र नाथ ब्रह्मा ने उस समय असम को 50-50 में बांटने की मांग की। दरअसल, यह विवाद असम आंदोलन (1979-85) का परिणाम था जो असम समझौते के बाद शुरू हुआ। असम समझौते में असम के लोगों के हितों के संरक्षण की बात कही गई थी। दिसंबर 2014 में अलगाववादियों ने कोकराझार और सोनितपुर में 30 लोगों की हत्या कर दी। इससे पहले वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम दंगों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख लोग विस्थापित हो गए थे।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.