सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरCreative Commons

वित्त मंत्रालय ने भारतीयों के स्विस बैंक में खातों का ब्योरा देने से मना कर दिया है। उसका कहना है कि यह जानकारी भारत और स्विट्जरलैंड के बीच टैक्स डील के 'गोपनीयता प्रावधान' के दायरे में आती है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में मंत्रालय ने विदेशों से प्राप्त काला धन का ब्योरा देने से भी मना कर दिया।

गौरतलब है कि अक्टूबर के पहले हफ्ते में सरकार को स्विस बैंक में भारतीय खाता धारकों के ब्यौरे की पहली सूची मिली थी। यह सूचना भारत को स्विटजरलैंड सरकार ने ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इन्फॉर्मेशन (AEOI) की नई व्यवस्था के तहत दी थी।

आरटीआई कानून के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा, 'इस प्रकार के समझौतों के तहत सूचना का आदान-प्रदान गोपनीयता प्रावधान के अंतर्गत आता है। इसलिए आरटीआई कानून की धारा 8 (1) और 8 (1) (एफ) के तहत विदेशी सरकारों से प्राप्त कर संबंधित सूचना के खुलासे से छूट प्राप्त है।'

कानून की धारा 8 (1) (A) उन सूचनाओं के खुलासों पर पाबंदी लगाता है जिससे भारत की संप्रभुता और एकता, सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, अन्य देशों से संबंधित प्रभावित होते हैं। वहीं दूसरे प्रावधान के तहत भरोसे के तहत अन्य देशों से प्राप्त सूचना के खुलासे से छूट है।

आरटीआई के तहत मंत्रालय से स्विट्जरलैंड से वहां के बैंकों में भारतीय खातों के बारे में मिली जानकारी के संदर्भ में ब्योरा मांगा गया था। मंत्रालय से दूसरे देशों से उसे काले धन के बारे में मिली सूचना के बारे में भी जानकारी मांगी गई थी। भारत को सूचना के स्वत: आदान-प्रदान के समझौते के तहत सितंबर में स्विट्जरलैंड से स्विस बैंक खाते का ब्योरा मिला था।

भारत उन 75 देशों में शामिल है जिसके साथ स्विट्जरलैंड के 'संघीय कर प्रशासन' (एफटीए) ने सूचना के स्वत: आदान-प्रदान पर वैश्विक मानकों की रूपरेखा के तहत वित्तीय खातों के बारे में सूचना का आदान-प्रदान किया है।

एफटीए ने भागीदार देशों को 31 लाख वित्तीय खातों की सूचना साझा की थी। वहीं स्विट्जरलैंड को करीब 24 लाख खातों की जानकारी प्राप्त हुई है। साझा की गई सूचना के तहत पहचान, खाता और वित्तीय सूचना शामिल है। इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्योरा दिया गया है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.