निर्माण का कार्य जल्द ही प्रारंभ कर दिया जाएगा और इस दौरान मंदिर में मौजूद मूर्तियों को मुख्य कक्ष में सील कर दिया जाएगा. तस्वीर में एक हिंदू महिला पूजा के दौरान शिवलिंग (भगवान शिव का एक रूप) पर दूध चढ़ाते हुए
निर्माण का कार्य जल्द ही प्रारंभ कर दिया जाएगा और इस दौरान मंदिर में मौजूद मूर्तियों को मुख्य कक्ष में सील कर दिया जाएगा. तस्वीर में एक हिंदू महिला पूजा के दौरान शिवलिंग (भगवान शिव का एक रूप) पर दूध चढ़ाते हुएरायटर्स

पाकिस्तान सरकार द्वारा उठाए गए एक सकारात्मक कदम, जो उसके लिये थोड़ी सराहना दिलवाने वाला भी साबित हो सकता है, के तहत इस्लामाबाद ने रावलपिंडी में स्थित एक कृष्ण मंदिर के जीर्णोद्धार और विस्तार के लिये 20 मिलियन रूपये की धनराशि जारी की है. यह फैसला इसलिये किया गया है ताकि मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों और आगंतुकों को समायोजित करने के लिये विस्तारित किया जा सके, विशेषकर धार्मिक आयोजनों और त्यौहारों के दौरान.

पीटीआई की खबर के मुताबिक, इवाक्यू ट्रस्ट प्राॅपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) के उप-प्रशासक मोहम्मद आसिफ ने द डाॅन को बताया कि पाकिस्तान सरकार ने धनराशि जारी करने का फैसला प्रांतीय असेंबली के एक सदस्य की दरख्वास्त के बाद किया है.

आसिर्फ ने पूरी प्रक्रिया के बारे में और जानकारी देते हुए बताया कि निर्माण का कार्य जल्द ही प्रारंभ कर दिया जाएगा और इस दौरान मंदिर में मौजूद मूर्तियों को मुख्य कक्ष में सील कर दिया जाएगा. उन्हें आगे बताया, ''एक बार पुर्ननिर्माण होने के बाद मंदिर अधिक श्रद्धालुओं को समायोजित कर सकेगा.''

मंदिर और उसमें आने वाले तीर्थयात्रियों की भारी संख्या के बारे मे बात करते हुए मंदिर के कर्ताधर्ता जग मोहन अरोड़ा ने बताया कि मंदिर को बढ़े बदलाव की आवश्यकता है और वर्तमान में आंगन में सिर्फ 100 श्रद्धालुओं ही आराम से आ सकते हैं. उन्होंने आगे कहा, ''वर्तमान में मंदिर काफी छोटा है. ईटीपीबी को किराये पर दी गई नजदीकी दुकानों को खाली करवा लेना चाहिये.''

रावलपिंडी में कृष्ण मंदिर
इस मंदिर को 1897 में कंजी मल, उजागर मल और राम राजपाल द्वारा इसलिये बनवाया गया था ताकि आसपास के रहने वाले लोग त्यौहारों और विभ्न्नि अवसरों पर यहां आकर पूजा कर सकें. द डाॅन के अनुसार इस दो मंजिला मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा पेड़ है जिसके नीचे शिवलिंग स्थापित है. यह मंदिर हिंदू भगवानों कृष्ण, गणेश और माता शेरावाली को समर्पित है.

इसके अलावा यहां पर इस मंदिर के निर्माण में सहयोग करने वालों के नाम प्रदर्शित करता एक शिलापट भी लगा है.

हालांकि विभाजन के बाद इस मंदिर को बंद कर दिया गया था और स्थानीय निवासियों को सद्दार में सड़क किनारे बने एक मंदिर में पूजा करनी पड़ती थी. रावलपिंडी का कृष्ण मंदिर 1949 में दोबारा खोला गया और 1970 में इसे ईटीपीबी को सौंपा गया. हालांकि यह मंदिर काफी छोटा है लेकिन इस्लामाबाद में रहने वाले कई राजनयिक नियमित रूप से इसके दर्शन करते हैं.

अरोड़ा यह भी कहते हैं कि यह मंदिर उनके दिल के काफी करीब है और वे बचपन से इसे देखते आ रहे हैं. इसके अलावा इसी गली में एक मस्जिद भी है और अरोड़ा कहते हैं कि दोनों ही समुदायों के बीच आपस में कोई मुद्दा नहीं है और उनकी याद में दोनों धर्मों के बीच कोई विवाद नहीं देखने को मिला है.

''जब मैं बच्चा था मैं सड़क पर अपने मुसलमान दोस्तों के साथ खेला करता था. एक दिन दोस्तों के साथ खेलते हुए मैं मस्जिद के भीतर चला गया और मौलवी साहब से पूछा, 'मौलवी जी, क्या मैं भी अजान दे सकता हूं क्योंकि मेरे सभी मुसलमान दोस्त ऐसा करते हैं?' मौलवी जी ने हंसते हुए जवाब दिया, 'क्यों नहीं!' उस दिन मैंने मस्जिद के भीतर पूजा की.''