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'राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव' की चर्चा के दौरान लोकसभा में विपक्ष और कांग्रेस पर बरसने के एक दिन बाद बुधवार 26 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्च सदन राज्यसभा में अपने जवाब में झारखंड में मॉब लिंचिंग घटना की निंदा करते हुए कहा कि आरोपियों को कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए।

पीएम मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में 'जनादेश पर सवाल उठाने वालों', हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने वालों पर जमकर हमला बोला। गालिब के शेर 'ताउम्र गालिब यह भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी, आईना साफ करता रहा ' के जरिए ईवीएम की बहानेबाजी को लेकर विपक्ष पर तीखा तंज भी कसा।

इस दौरान उन्होंने चुनाव के नतीजों से लेकर बिहार में बच्चों की जान लेने वाले चमकी बुखार, ईवीएम, आधार, जीएसटी, किसान, मीडिया और कई अन्य मुद्दों पर विपक्ष को घेरा और कहा कि विपक्ष को अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए।

उन्होंने समूचे विपक्ष पर भी हमला किया और कहा कि कांग्रेस अपनी चुनावी हार को पचा नहीं पा रही है। पीएम मोदी ने कहा, "वे हार को स्वीकार नहीं कर पाए हैं। मैं लोकतंत्र में इसे स्वस्थ संकेत नहीं मानता।"

उन्होंने यह भी कहा कि मतदाताओं को लोकसभा और राज्यसभा में होने वाली सभी बातों की जानकारी है और उन्होंने इसे ध्यान में रखते हुए मतदान किया है।

उन्होंने कहा, "जब कुछ नेता बोले कि बीजेपी और उनके सहयोगी चुनाव जीत गए, लेकिन देश हार गया, लोकतंत्र हार गया - तो मुझे दुख हुआ। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि इस तरह के बयान दुर्भाग्यपूर्ण हैं। आखिर मतदाताओं की सूझ-बूझ पर सवाल क्यों?"

झारखंड में हुई मॉब लिंचिंग की घटना पर पीएम मोदी ने कहा कि युवक की हत्या का दुख हमें भी है। हिंसा की घटनाएं कहीं भी हो, सही नहीं है। मॉब लिंचिंग के लिए पूरे झारखंड को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है।

पीएम मोदी ने कहा कि ऐसे मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। दोषी कोई भी हो, उसके लिए कानून व्यवस्था है। उसे सजा मिलनी चाहिए। झारखंड में कुछ लोग खराब हैं तो कई अच्छे लोग भी हैं। किसी भी राज्य को मॉब लिंचिंग की फैक्ट्री कहना सही नहीं।

कांग्रेस पर देश की जनता और मतदाता का अपमान का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इतना अहंकार ठीक नहीं कि कांग्रेस जीते तो देश जीता और कांग्रेस हारी तो देश हार गया। मोदी ने इसके साथ ही 'एक देश, एक चुनाव' के मुद्दे पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में न आने को लेकर भी कांग्रेस पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने झारखंड में हुई मॉब लिंचिंग की घटना की भी निंदा की। पीएम मोदी ने कहा कि वह झारखंड में हुई इस घटना से आहत हुए हैं। आइए सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं पीएम मोदी ने राज्यसभा में क्या-क्या कहा।

पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रहे मदनलाल सैनी को श्रद्धांजलि दी। पीएम ने कहा, 'नए जनादेश के बाद आज पहली बार राज्यसभा के सभी सदस्यों के बीच अपनी बात रखने का मौका मिला है। पहले से अधिक जनसमर्थन और अधिक विश्वास के साथ हमें दोबारा देश की सेवा करने का अवसर देशवासियों ने दिया है। मैं सबका आभार प्रकट करता हूं। लेकिन दूसरे टर्म की शुरुआत में ही हमारे सदन के आदरणीय सदस्य मदनलाल जी हमारे बीच नहीं रहे, मैं उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं।'

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पिछले 2 दिन से जो चर्चा चल रही है, उस चर्चा में गुलामनबी आजाद, दिग्विजय सिंह समेत करीब 50 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया। सबने अपने-अपने तरीके से अपनी बात बताई है। कहीं खट्टापन भी था, कहीं तीखापन भी था। कभी व्यंग्य भी था, कहीं आक्रोश भी था। कहीं पर रचनात्मक सुझाव भी थे, कहीं जनता जनार्दन का अभिवादन भी था। हर तरह के भाव यहां प्रकट हुए हैं। कुछ लोग वो भी थे जिन्हें मैदान में जाने का मौका नहीं मिला तो वहां जो गुस्सा निकालना था, उसे यहां निकाला।

यह चुनाव बहुत खास रहा। कई दशकों के बाद दोबारा एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनना, भारत के मतदाताओं के मन में राजनीतिक स्थिरता का महत्व क्या है, एक परिपक्व मतदाता की इसमें सुगंध महसूस हो रही है। यह सिर्फ इस चुनाव की बात नहीं है। हालियां कई चुनावों में मतदाताओं ने स्थिरता को तवज्जो दिया।

बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब चुनाव स्वयं जनता-जनार्दन लड़ती है। 2019 का चुनाव दलों से परे देश की जनता लड़ रही थी। जनता खुद सरकार के कामों की बात लोगों तक पहुंचाती थी। जिसे लाभ नहीं पहुंचा, वह भी इस विश्वास से बात कर रहा था कि उसको मिला है, मुझे भी मिलने वाला है।

मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश के कोने-कोने में जनता जनार्दन का दर्शन करने का मौका मिला। लेकिन भारत का एक परिपक्व लोकतंत्र हो, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो, चुनाव की ग्लोबल वैल्यू होती है। उस समय अपनी सोच की मर्यादाओं के कारण, विचारों में पनपी हुई विकृति के कारण इतने बड़े जनादेश को हम यह कह दे कि आप तो चुनाव जीत गए लेकिन देश चुनाव हार गया। मैं समझता हूं कि इससे बड़ा भारत के लोकतंत्र का अपमान नहीं हो सकता। इससे बड़ा जनता-जनार्दन का अपमान नहीं हो सकता।

जब यह बात कही जाती है कि लोकतंत्र हार गया, देश हार गया तो मैं जरूर पूछना चाहूंगा कि क्या वायनाड में हिंदुस्तान हार गया क्या? क्या रायबरेली, बहरामपुर, तिरुवनंतपुरम में हिंदुस्तान हार गया क्या? यह कौन सा तर्क है? यानी कांग्रेस हारी तो देश हार गया? मतलब कांग्रेस मतलब देश और देश मतलब कांग्रेस? अहंकार की एक सीमा होती है। 55-60 सालों तक देश पर राज करने वाला दल 17 राज्यों में एक सीट भी नहीं जीत पाया। मैं समझता हूं कि इस प्रकार की भाषा बोलकर हमने मतदाता के विवेक पर ठेस पहुंचाई है। हमारी आलोचना समझ सकता हूं, लेकिन देश के मतदाताओं के ऐसा अपमान बहुत पीड़ा देता है। हो सकता है कि मेरी वाणी में कोई आक्रोश भरे शब्द भी हो, लेकिन वे मेरे दल के लिए नहीं हैं, इस देश के परिपक्व लोकतंत्र के लिए है, संविधाननिर्माताओं की समझदारी के लिए है।

40-45 डिग्री टेम्परेचर में लोग वोट डालने जा रहे थे। कितने-कितने लोगों की तपस्या के बाद चुनाव होता है। और हम मतदाताओं का अपमान कर दिया। यह तक कह दिया कि इस देश का किसान बिकाऊ है, 2-2 हजार रुपये की स्कीम पर बिक गया। मेरे देश का किसान बिकाऊ नहीं है, जो सबका पेट भरता है उस किसान के लिए ऐसे शब्दों के इस्तेमाल से अपमानित किया गया।

मीडिया को भी गाली दी गई। मीडिया के कारण भी चुनाव जीते जाते हैं। मीडिया बिकाऊ है क्या? मीडिया को कोई खरीद लेता है क्या? हम कुछ भी कहते रहते हैं। सदन में कही गई बातों का महत्व होता है।

हमें गर्व होना चाहिए कि भारत की चुनाव प्रक्रिया विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला अवसर होता है, इसे खोना नहीं चाहिए।...पहली बार पुरुषों के बराबर ही महिलाओं ने भी वोटिंग में हिस्सा लिया। इस बार 78 महिला सांसद जीतकर आई हैं। देश के सभी कोनों में बहुमत जीतकर बीजेपी आई है, एनडीए आया है। जो लोग हार गए हैं, जिनके सपने चूर-चूर हो गए हैं, जिनका अहंकार टूट चुका है, वे जनता का धन्यवाद नहीं पाएंगे लेकिन मैं जनता-जनार्दन का अभिनंदन करता हूं।

यहां पर ईवीएम की चर्चा भी काफी हो रही है। एक नई बीमारी भी शुरू हुई है। ईवीएम को लेकर सवाल उठाए जाते हैं, बहाने बनाए जाते हैं। कभी हम भी सदन में सिर्फ 2 रह गए थे। हमारा मजाक उड़ाया गया था। मगर हमें अपनी विचारधारा और अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा था। हमने उस समय पोलिंग बूथ पर यह हुआ, वह हुआ, इस तरह की बहानेबाजी नहीं की। लेकिन जब स्वयं पर भरोसा नहीं होता है, सामर्थ्य का अभाव होता है तब फिर बहाने खोजे जाते हैं। आत्मचिंतन, दोष स्वीकारने की जिनकी तैयारी नहीं होती है, वे फिर ईवीएम को ढूढ़ते हैं ठीकरा फोड़ने के लिए। ताकि अपने साथियों को बता सकें कि हमने तो बहुत मेहनत की लेकिन ईवीएम की वजह से हार गए।

चुनाव प्रक्रिया में सुधार होता गया है। शुरुआत में महीनों-महीनों तक चुनाव चलते थे। चुनाव सुधार की एक निरंतर प्रक्रिया चलती रही। चुनाव बाद अखबारों की हेडलाइन होती थी कि कितनी हिंसा हुई, कितने लोग मारे गए और कितने बूथ कैप्चर हुए। लेकिन आज ईवीएम के जमाने में हेडलाइन होती है कि पहले के मुकाबले मतदान कितना बढ़ा।... जबसे सही अर्थ में लोकतंत्र की प्रक्रिया आई है, ऐसे लोगों के हारने का क्रम भी तभी शुरू हुआ है। इसलिए उनको वापस उसी जगह पर जाना है। देश लोकतंत्र को इस प्रकार से दबोचने की प्रक्रिया में मदद नहीं कर सकता है।

ईवीएमपर सबसे पहले 1977 में चर्चा शुरू हुई। 1982 में पहली बार इसका प्रयोग किया गया। 1988 में कानूनन इस व्यवस्था को स्वीकृति दी। इतना ही नहीं, 1992 में कांग्रेस के नेतृत्व में ही इस ईवीएम को लेकर सारे रूल बनाए गए थे। अब हार गए हो तो रो रहे हो। ईवीएम से देश में अबतक 113 विधानसभा चुनाव हुए हैं। यहां उपस्थित करीब-करीब सभी दलों को उसी ईवीएम से चुनाव जीतकर सत्ता में आने या उसमें भागीदार बनने का मौका मिला है। 4 लोकसभा के चुनाव हुए हैं। उसमें भी दल बदले हैं, अलग-अलग लोग जीतकर आए हैं। 2001 के बाद विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी ईवीएम को लेकर मसले उठाए गए हैं, लेकिन सारे मामलों में न्यायपालिका ने सकारात्मक निर्णय दिया। चुनाव आयोग ने ईवीएम से छेड़छाड़ का चैलेंज भी दिया था, लेकिन यहां जो ईवीएम का रोना रो रहे हैं, उनमें से कोई दल नहीं गया। सिर्फ 2 दल सीपीआई और एनसीपी गए वह भी प्रक्रिया समझने के लिए।

मैं हैरान हूं। कांग्रेस पार्टी के लिए कहना चाहता हूं कि इतने सालों तक आपने देश पर शासन किया है। आप विजय भी नहीं पचा पाते और 2014 से मैं लगातार देख रहा हूं कि आप पराजय को स्वीकार भी नहीं कर पाते हैं।

एक देश, एक चुनाव पर चर्चा तो कीजिए। जितने भी बड़े नेताओं से मिला हूं तो व्यक्तिगत तौर पर सबने कहा कि यार इससे मुक्ति मिलनी चाहिए। क्या यह समय की मांग नहीं है कि कम से कम मतदातासूची तो एक हो। राज्य और केंद्र मिलकर चुनाव बनाए इसके लिए। चुनाव के रिफॉर्म अनिवार्य हैं। ये होते रहने चाहिए।

सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास हमारे 5 साल के कार्यकलाप से देश की जनता ने अमृत दे दिया है। राजनीतिक चश्मे उतारकर देखना शुरू करें तो धुंधला नजर नहीं आएगा उज्ज्वल भविष्य नजर आएगा। जब दिल्ली की सड़कों पर गले में तार लटकाकर सिखों को जिंदा जला दिया जाता था। जिनके नाम आए आज भी वो कांग्रेस पार्टी में बड़े पदों पर हैं। उपदेश देने से पहले अपने घरों में झांकने की जरूरत है। तब हम ये सब चीजें भूल जाते हैं। ऐसे तो कई उदाहरण मिलेंगे।

बिहार के चमकी बुखार हमारी सबसे बड़ी विफलताओं में शामिल है। हम सबको इसको गंभीरता से लेना होगा। पूर्वी यूपी में अच्छी स्थिति नजर आ रही है पर बड़ा क्लेम नहीं कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि जो यह दुखद स्थिति है उससे जल्दी हम बाहर निकल जाएंगे। मैं राज्य सरकार से संपर्क में हूं। मैंने तुरंत अपने हेल्थ मिनिस्टर को वहां दौड़ाया। जितना जल्दी हो सके इससे लोगों को निकालेंगे। पोषण, टीकाकरण, आयुष्मान के जरिए लोगों को बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। ऐसी समस्याओं से लोगों को बचाने के लिए काम करना होगा।