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राज्यपाल द्वारा बहुमत परीक्षण के लिए डेडलाइन तय किए जाने के खिलाफ कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए याचिका में दलील दी कि राज्यपाल वजुभाई वाला विधानसभा की कार्यवाही में दखल नहीं दे सकते। मुख्यमंत्री ने विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए राज्यपाल द्वारा एक के बाद एक डेडलाइनल तय किए जाने पर सवाल उठाया है। इसके अलावा कर्नाटक कांग्रेस ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि कोर्ट के 17 जुलाई के आदेश की वजह से पार्टी का अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का अधिकार खतरे में आ गया है। यह याचिका कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव ने दायर की है।

कुमारस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि गवर्नर ने गुरुवार को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि शुक्रवार दोपहर डेढ़ बजे तक बहुमत परीक्षण हो जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है, 'जब विश्वास मत प्रस्ताव की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी हो, तब गवर्नर इस तरह का निर्देश नहीं जारी कर सकते हैं। विश्वासमत प्रस्ताव पर फिलहाल बहस चल रही है।' इसमें कहा गया है कि कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के. आर. रमेश कुमार भी कह चुके हैं कि चर्चा समाप्त होने के बाद ही वोटिंग होगी। याचिका में आगे कहा गया है, 'इन परिस्थितियों में गवर्नर दखल नहीं दे सकते कि विधानसभा में बहस किस तरीके से हो।'

कुमारस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने शुक्रवार को राज्यपाल को खत लिखकर सूचित किया कि सदन में पहले ही विश्वासमत प्रस्ताव पेश हो चुका है और फिलहाल उस पर बहस जारी है। उन्होंने कहा है कि गवर्नर ने शुक्रवार को एक और पत्र लिखकर शाम 6 बजे से पहले बहुमत साबित करने को कहा है। याचिका में कहा गया है, 'गवर्नर द्वारा जारी किए गए निर्देश गवर्नर की शक्तियों के संदर्भ में इस अदालत द्वारा तय किए गए कानून के पूरी तरह खिलाफ हैं।'

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मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने भी अपनी याचिका में विप के मुद्दे को उठाया है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों को अपने विधायकों/सांसदों को विप जारी करने का अधिकार है। संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दल को विप जारी करने का अधिकार है। उसे इस अधिकार से रोका नहीं जा सकता।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि बागी विधायकों को बहुमत परीक्षण की कार्यवाही में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सदन की कार्यवाही में भाग लेने या न लेने का विकल्प दिया था। इस आदेश के कारण 19 विधायक बहुमत परीक्षण में हिस्सा लेने नहीं आए थे।

याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का राजनीतिक दल का अधिकार कमजोर हुआ है। राव ने कहा कि न्यायालय को इस आदेश पर स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए कि बागी विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा। कांग्रेस ने कहा था कि इस मामले में पार्टी है ही नहीं, फिर उसके अधिकार को सुप्रीम कोर्ट कैसे रोक सकता है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।