कई भारतीयों को 2019 का इंतजार सिर्फ इस वर्ष होने वाले आम चुनावों को लेकर है. लेकिन इस बात की पूरी उम्मीद है कि उत्तर भारतीय शहर इलाहाबाद भी अगले साल आयोजित होने वाले कुंभ मेले, जिसे विश्व का सबसे बड़ा जनसमूह माना जाता है, से पहल एक महत्वपूर्ण बदलाव का साक्षी बने.
एएनआई की खबर के मुताबिक योगी सरकार इस धार्मिक आयोजन के शुरू होने से पहले इलाहाबाइ का नाम बदलकर प्रयागराज करने का निर्णय ले सकती है. असलियत में, पूरे शहर में पहले ही कुंभ मेले की घोषणा करने वाले पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें शहर का नाम प्रयागराज दर्शाया गया है.
इस आयोजन से पहले शहर का नाम बदलने की खबर की पुष्टि करते हुए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने समाचार एजेंसी को बताया कि इलाहाबाद को सदियों से प्रयागराज के नाम से ही जाना जाता है और ऐसे में शहर का नाम बदलने में कोई बुराई नहीं है.
इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने का यह कदम वास्तव में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी द्वारा हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस बाबत किये गए अनुरोध के बाद लिया गया है.
द पायनियर ने गिरी के हवाले से लिखा, ''मुगल सम्राट द्वारा की गई गलतियों को सुधारा जाना आवश्यक है. हमें इस बात की पूरी उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के लिये आदेश जरूर पारित करेंगे.'' और अब उन्होंने भी मुख्यमंत्री द्वारा इस अनुरोध को स्वीकार किये जाने की पुष्टि की है.
इलाहाबाद को प्रयागराज के नाम से क्यों जाना जाता है?
इलाहाबाद को मूल रूप से प्रयाग यानी बलिदान का स्थान कहा जाता था. इसका यह नाम संगम की अपनी स्थिति के चलते बना था जो गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम है.
कहा जाता है कि अकबर ने 1575 में प्रयाग शहर का नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया था और यमुना नदी के किनारे पर एक महल का निर्माण भी करवाया था. आज भी यहां पर प्रयाग संगीत समिति जैसे संस्थान मौजूद हैं जो शहर के प्राचीन नाम को जीवित रखे हुए हैं. इसके अलावा शहर के एक छोटे सहायक रेलवे स्टेशन को भी प्रयाग स्टेशन के नाम से जाना जाता है.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इलाहाबाद उन चुनिंदा स्थानों में से एक है जहां भगवान विष्णु से अमृत की कुछ बूंदे गिरी थीं और इसीलिये इस शहर में प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है. संगम इस कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हे क्योंकि देश-विदेश से आने वाले लाखों तीर्थयात्री शहर में आते हैं और इस दौरान संगम का पवित्र स्नान करते हैं.
कहा जाता है कि प्रयाग के अलावा उत्तराखंड के हरिद्वार, महाराष्ट्र के नासिक और मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी अमृत की कुछ बूंदें गिरी थी और इसीलिये इन सभी स्थानों पर प्रत्यक 12 वर्षो में विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं.