-
Twitter / @ANI

केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार गुरुवार को विपक्ष के भारी विरोध के बीच दो बिल पास करवाने में सफल रही. ट्रिपल तालक की प्रथा पर रोक लगाने और दोषी को तीन साल की जेल की सजा देने का विधेयक गुरुवार को लोकसभा पास हुआ, तो वहीं सरकार आरटीआई संशोधन विधेयक को राज्यसभा से पास करवाने में कामयाब रही। तीन तलाक बिल पर वोटिंग के दौरान पक्ष में 303 वोट, जबकि विरोध में 82 मत डाले गए।

अब सरकार की कोशिश इसे इसी सत्र में राज्यसभा में पास कराने की होगी। मौजूदा सत्र को भी बढ़ा दिया गया है जो अब 7 अगस्त तक चलेगा। संशोधनों और बिल पर वोटिंग के दौरान कांग्रेस सांसदों ने वॉक आउट किया। टीएमसी और जेडीयू ने भी वॉक आउट किया।

बता दें कि शायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी तीन तलाक बिल को लोकसभा की मंजूरी मिल गई थी लेकिन राज्यसभा से इसे मंजूरी नहीं मिली थी, जिसके बाद सरकार ने तीन तलाक को लेकर अध्यादेश जारी किया था। 

उधर, राज्यसभा में आरटीआई संशोधन विधेयक पर वोटिंग से पहले ही कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट कर दिया। हालांकि सरकार ने इस बिल के लिए ज़रूरी नंबर पहले से ही जुटा लिए थे जब एनडीए के बाहर की कई पार्टियों का समर्थन उसे हासिल हो गया था। टीआरएस, बीजेडी और पीडीपी भी इस बिल पर सरकार के साथ रही।

इससे पहले लोकसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि बिल का विरोध करने वाले वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह मसला न धर्म का है, न इबादत का, न सियासत का, न वोट का, बल्कि यह मसला नारी के साथ न्याय का है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि 1986 में शाह बानो केस में अगर वोट बैंक पॉलिटिक्स को लेकर कांग्रेस के पांव नहीं हिले होते तो आज हमें इस बिल को भी लाने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने कहा कि वह नरेंद्र मोदी सरकार में कानून मंत्री हैं, राजीव गांधी सरकार के कानून मंत्री नहीं और वह मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय के पक्ष में खड़े रहेंगे।

कानून मंत्री ने तीन तलाक पर कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, इसे भी स्पष्ट करने की कोशिश की। रविशंकर प्रसाद ने कहा, '2017 से तीन तलाक के 574 केस, सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद 345 केस, ऑर्डिनेंस के बाद भी तीन तलाक के 175 केस आए। एक दिन मेरे पास मुस्लिम समाज की एक आईटी प्रफेशनल आई। वह तीन बच्चों की मां थी और उसके पति ने तीन तलाक दे दिया था। क्या इन तमाम महिलाओं को सड़क पर छोड़ दें? मैं नरेंद्र मोदी सरकार का कानून मंत्री हूं, राजीव गांधी सरकार का नहीं। अगर सन 1986 में यह काम हो गया होता तो आज हमें यह नहीं करना पड़ता।'

प्रसाद ने कहा, 'कहा गया कि क्रिमिनलाइज कर देंगे तो मैटिनंस कैसे देगा? जब मुस्लिम पति दहेज कानून में जेल जाता है तो उस समय मैटिनंस का सवाल कहां चला जाता है? क्रिमिनल लॉ अपराध को होने से रोकता है। डेटरेंस होता है।'

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरREUTERS/Amit Dave

रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'कहा जा रहा है कि मुस्लिमों को टारगेट किया जा रहा है। हमें अल्पसंख्यकों का वोट कम मिलता है लेकिन हम जब भी जीतते हैं तो सबका साथ, सबका विकास की राह पर चलते हैं। चाय बागान में काम करने वाले करीमुल हक को हम पद्मश्री देते हैं, उस वक्त उसका मजहब नहीं देखते।.... हम सियासी नफा-नुकसान सोचकर कोई कदम नहीं उठाते।'

इस बिल को लेकर बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने के लिए कहा था। विधेयक में एक साथ तीन तलाक कह दिए जाने को अपराध करार दिया गया और साथ ही दोषी को जेल की सज़ा सुनाए जाने का भी प्रावधान है। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने मई में इस बिल का मसौदा पेश किया था, जिसको लेकर कई विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई थी। विपक्ष के साथ बिहार में एनडीए में सहयोगी जेडीयू भी इस बिल का विरोध करती है।

आपको बता दें कि लोकसभा में तो सरकार के पास इस बिल को पास कराने के लिए पर्याप्त नंबर है लेकिन राज्यसभा से इसे पास कराना आसान नहीं होगा।

इसके अलावा गुरुवार को राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। साथ ही सदन ने इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी यानी प्रवर समिति में भेजने के लिए लाए गए विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया।

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आरटीआई कानून बनाने का श्रेय भले ही कांग्रेस अपनी सरकार को दे रही है किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासन काल में सूचना के अधिकार की अवधारणा सामने आई थी। उन्होंने कहा कि कोई कानून और उसके पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिससे सरकारें समय-समय पर जरूरत के अनुरूप संशोधित करती रहती हैं।

सिंह ने मोदी सरकार के शासनकाल में केन्द्रीय सूचना आयुक्त और अन्य आयुक्तों के पद लंबे समय तक भरे नहीं जाने के विपक्ष के आरोपों पर कहा कि इन पदों को भरने की एक लंबी प्रक्रिया होती है और पूर्व में भी कई बार यह पद लंबे समय तक खाली रहे हैं। उन्होंने ध्यान दिलाया कि मुख्य सूचना आयुक्त की चयन समिति की 3 बार बैठक इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि लोकसभा में तत्कालीन विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे बैठक में नहीं आए।

जितेंद्र सिंह ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में पहले ही केंद्र को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, आज भी वही व्यवस्था है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है। इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी।

इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हैं। वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है। ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है।