उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्दियों की छुट्टियों के बाद जनवरी, 2020 में सुनवाई की जायेगी। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष अधिवक्ता और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस मामले का उल्लेख करते हुये इस पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया।
पीठ ने कहा कि इस पर तत्काल सुनवाई नहीं की जा सकती और इसे सर्दियों के अवकाश के बाद जनवरी, 2020 में सूचीबद्ध किया जायेगा। उपाध्याय ने अपनी याचिका में बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं को 'असंवैधानिक' और 'गैरकानूनी' घोषित करने का अनुरोध किया है। शीर्ष अदालत ने जुलाई, 2018 में इस मामले पर विचार के बाद इसे संविधान पीठ को सौंप दिया था और उससे इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई का आग्रह किया था।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता फरजाना की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया था और उपाध्याय की याचिका को संविधान पीठ द्वारा सुनवाई के लिये लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया था। न्यायालय ने विधि एवं न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी नोटिस जारी किये थे।
याचिका में कहा गया है, ''याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका दायर कर मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला को गैरकानूनी और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध कर रहा है।''
याचिका में न्यायेतर तलाक को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता , निकाह हलाला को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत अपराध और बहुविवाह को भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
विदित हो कि शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त, 2017 को सुन्नी समुदाय में एक ही बार में तीन तलाक देने की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था और 26 मार्च, 2018 को बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को लेकर दायर याचिकायें संविधान पीठ को सौंप दी थी।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.