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दूरसंचार कंपनियां के कॉल कटने (कॉल ड्रॉप) या खराब सेवाओं के बदले में मुफ्त वॉयस कॉल की बात पर दूरसंचार नियामक ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने रविवार को कहा कि कॉलड्रॉप का मुद्दा ट्राई के एजेंडे पर बना रहेगा. वह पुणे में एशिया आर्थिक संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे.

उन्होंने कहा कि कॉल ड्रॉप को लेकर भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) के कंपनियों पर जुर्माने के प्रावधान को उच्चतम न्यायालय में सफलतापूर्वक चुनौती दी गई, लेकिन वह सेवा गुणवत्ता बेहतर करने की दिशा में काम करता रहेगा.

शर्मा ने कहा, 'अधिकतर कंपनियां मुफ्त वॉयस कॉल की सुविधा दे रही है. ऐसे में एक बड़ी बहस है कि अगर कुछ मुफ्त है तो ट्राई उस पर कितना दंड लगा सकता है, क्योंकि कंपनियों को उससे कुछ मिल नहीं रहा. लेकिन यह सही नहीं है, क्योंकि वह अनिवार्य रूप से उसकी लागत अन्य सेवाओं से निकाल रही हैं.' शर्मा का यह बयान ऐसे समय आया है जब देशभर में दूरसंचार उपभोक्ता कॉल ड्रॉप से परेशान हैं.

वर्ष 2016 में रिलायंस जियो के बाजार में उतरने के बाद अधिकतर कंपनियों को डेटा सेवाओं के साथ मुफ्त वॉयस कॉल की सेवा देना शुरू करना पड़ा. इससे कंपनियों की आय प्रभावित हुई, क्योंकि उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा कॉल शुल्क से आता था. शर्मा ने कहा कि वह कॉल ड्रॉप की समस्या से अवगत हैं और उम्मीद करते हैं कि समय से साथ सेवा गुणवत्ता बेहतर हो जाएगी.

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ट्राई के अधिकारी सड़कों, रेलगाड़ियों और अन्य व्यस्त स्थानों पर मानक परीक्षण करते हैं. यदि किसी सेवाप्रदाता की सेवा गुणवत्ता खराब पायी जाती है तो उसे दंडित किया जाता है. इस सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय और पुणे अंतरराष्ट्रीय केंद्र के सहयोग से किया गया.

शर्मा ने इस दौरान लोगों से आग्रह किया कि वह दूरसंचार टावर लगवाने के लिए आगे आएं क्योंकि इससे स्वास्थ्य को कोई हानि नहीं होती. उन्होंने कहा कि सूदूरतम इलाकों में दूरसंचार सेवाएं पहुंचान के लिए टावर खड़े किये जाना जरूरी है. इससे लोगों को अपनी ऊंची-ऊंची मंजिलों की सोसायटी में बेहतर नेटवर्क भी सुनिश्चित होगा.

आगामी प्रौद्योगिकी 5जी के बारे में शर्मा ने कहा कि इसका बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए निवेश की जरूरत है और ऑप्टिकल फाइबर को बिछाना एक दुष्कर काम है. देश में मोबाइल इंटरनेट पर बहुत निर्भरता है और हमें वायर के माध्यम से इंटरनेट और पहुंचाने की जरूरत है.

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.