दूसरी राजनीतिक पार्टियों पर परिवारवाद और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुखिया मायावती ने रविवार को फिर से अपने भाई आनंद कुमार को पार्टी उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में नियुक्त करके पार्टी में दोबारा भाई-भतीजावाद की शुरुआत की। इस तरह आकाश आनंद की बीएसपी में आधिकारिक एंट्री हो गई है।
गौरतलब है कि मायावती ने अप्रैल 2017 में आनंद कुमार को पार्टी उपाध्यक्ष नियुक्त किया था, लेकिन इस फैसले के बाद मायावती के खिलाफ भाई-भतीजावाद के आरोप लगने पर उन्होंने मई 2018 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
बसपा अध्यक्ष ने रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह घोषणा की। बीएसपी कैडर में कोऑर्डिनेटर का सबसे बड़ा पद माना जाता है। ऐसे में मायावती ने इस फैसले से साफ कर दिया है कि पार्टी में उनके अपनों की दखल बढ़ने वाली है।
इसके अलावा वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र को राज्यसभा में बीएसपी नेता सदन का पद दिया गया है। रामजी गौतम को भी नैशनल कोऑर्डिनेटर, दानिश अली लोकसभा में नेता सदन और गिरीश चंद्र को लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाने का फैसला लिया गया है। रामजी गौतम भी मायावती के भतीजे हैं।
इस मीटिंग में इसके अलावा भतीजे आकाश आनंद को नैशनल कोऑर्डिनेटर बनाने, यूपी में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की रणनीति के साथ ही कई अहम बातों पर चर्चा की गई और फैसले लिए गए।
बीएसपी चीफ के ऐलान के बाद आकाश आनंद अब पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे। कहा जा रहा है कि पुरानी पद्धति पर काम कर रही बीएसपी में आकाश के आने के बाद से कई बदलाव आए। सामान्यता मीडिया और सोशल मीडिया से दूर रहने वाली मायावती अपने भतीजे के कहने पर ट्विटर पर आईं और लोकसभा चुनाव से पहले आधिकारिक अकाउंट बनाया। इतना ही नहीं, मायावती अब लगातार ट्विटर के जरिए विपक्ष पर हमला बोलती रहती हैं। आकाश अब पार्टी को युवा दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने के लिए काम करेंगे।
बीएसपी की बैठक सुबह दस बजे से थी लेकिन पार्टी के सभी नेता सुबह नौ बजे बैठक स्थल पर पहुंच गए। यहां पर इस बार एक खास बात नजर आई कि बैठक से पहले सारे नेताओं के मोबाइल फोन जमा करा लिए गए। यहां तक कि उनके जूते-चप्पल, पेन, पर्स, बैग और गले में पड़े ताबीज तक उतरवाकर मीटिंग हॉल में अंदर जाने दिया गया।
विधानसभा उपचुनाव मायावती के लिए बेहद अहम हैं। लोकसभा चुनाव बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा और पार्टी के हिस्से में 10 सीटें आईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में इस चुनाव के नतीजे को अकेले मायावती के जनाधार से जोड़कर नहीं देखा जा रहा है। लोग मान रहे हैं कि बीएसपी अकेले चुनाव लड़तीं तो उन्हें दस सीटें नहीं मिलतीं। अब जबकि पार्टी एसपी से अलग होकर उपचुनाव लड़ रही है, तो नतीजों को सीधे तौर पर मायावती के राजनीतिक वजूद से जोड़कर देखा जाएगा।