उच्चतम न्यायालय ने पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एम आर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने पीडीपी मुखिया की पुत्री इल्तिजा मुफ्ती से कहा कि वह लिखित में यह आश्वासन दें कि उन्होंने अपनी मां की नजरबंदी के खिलाफ उच्च न्यायालय सहित किसी अन्य न्यायिक मंच पर कोई याचिका दायर नहीं की है।
इल्तिजा ने महबूबा मुफ्ती को जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करने के सरकार के पांच फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुये शीर्ष अदालत में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर रखी है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया जाता है जिसे कथित रूप से गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया हो।
पीठ ने इल्तिजा की वकील नित्या रामकृष्णन से सवाल किया कि उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका क्यों नहीं दायर की। नित्या रामकृष्णन ने उच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र करते हुये कहा कि वह इस तरह की याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकता और वैसे भी शीर्ष अदालत एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुला की नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका का संज्ञान ले चुका है। पीठ इस याचिका पर 18 मार्च को सुनवाई करेगी।
इस याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के दौरान इल्तिजा की ओर से अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि महबूबा को पीएसए के तहत नजरबंद करने के लिये बनाये गये आधार दुराग्रहपूर्ण और गैरकानूनी है। उन्होंने कहा कि इन आधारों पर किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता और वैयक्तिक आजादी के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
पीठ ने रामकृष्णन से कहा कि वह एक हलफनामा दाखिल करें कि क्या किसी और ने भी नजरबंदी के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में कोई याचिका तो दायर नहीं की है। रामाकृष्णन ने हालांकि इससे इंकार किया लेकिन इस संबंध में एक दो दिन में ही हलफनामा दाखिल करने का पीठ को आश्वासन दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि महबूबा मुफ्ती पर बहुसंख्यक आबादी में भय पैदा करने और 'सस्ती राजनीति' करने के आरोप हैं। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अपने डोजियर में ऐसी एक भी घटना का जिक्र नहीं किया है। उन्होंने कहा कि पीडीपी की अध्यक्ष को पीएसए के तहत गलत तरीके से नजरबंद किया गया है।
इससे पहले, इसी पीठ ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पीएसए के तहत नजरबंद करने के सरकार के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया था। मुफ्ती और अब्दुल्ला के अलावा नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के दो नेताओं को भी प्रशासन ने पीएसए के तहत नजरबंद किया है।
इन नेताओं को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों के साथ ही अनुच्छेद 35-ए खत्म करने के बाद एहतियात के तौर पर नजरबंद करने की छह माह की अवधि पूरी होने से चंद घंटों पहले ही छह फरवरी को पीएसए के तहत नजरबंद करने का आदेश प्रशासन ने जारी किया था।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.