-
Twitter / @ANI

केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के शासनकाल के दौरान सरकारी बैंकों से दिए गए बैड लोन (ऐसे ऋण, जिनकी वापसी नहीं हुई) की भारी-भरकम रकम की तरफ इशारा करते हुए समस्याओं का ठीकरा उन आलोचकों के सिर पर ही फोड़ दिया है, जो अर्थव्यवस्था को लेकर उनकी आलोचना करते रहे हैं. निर्मला सीतारमण ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की 'जोड़ी' को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के 'सबसे बुरे दौर' के लिए ज़िम्मेदार करार दिया.

समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के मुताबिक, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में मंगलवार को वित्तमंत्री ने कहा, "मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राजन जो कुछ भी कहते हैं, वही महसूस करते हैं... और आज, मैं यहां उन्हें पूरा सम्मान देते हुए यह सच्चाई आप सबके सामने रखना चाहती हूं कि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उससे ज़्यादा बुरा वक्त कभी नहीं देखा, जब सिंह और राजन की जोड़ी प्रधानमंत्री और आरबीआई गवर्नर के रूप में काम कर रही थी... उस वक्त, हममें से किसी को भी उस बारे में पता नहीं था..."

आरबीआई के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए या बैड लोन) वर्ष 2011-2012 में 9,190 करोड़ रुपये थीं, जो वर्ष 2013-2014 में बढ़कर 2.16 लाख करोड़ रुपये हो गईं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने मई, 2014 में सत्ता संभाली थी.

निर्मला सीतारमण अर्थव्यवस्था में धीमी गति, जिसकी वजह से वित्त से उत्पादन तक के सेक्टरों पर गहरी आंच आती नज़र आ रही है, को लेकर आलोचनाओं का सामना करती रही हैं. उन्होंने भारत के वित्तीय घाटे (यानी सरकार का खर्च आय से अधिक हो) के बढ़ने का खतरा उठाकर भी सितंबर में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की घोषणा की थी, ताकि अर्थव्यवस्था को बेहतर किया जा सके.

प्रधानमंत्री रह चुके डॉ मनमोहन सिंह और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, दोनों ही नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के मुखर आलोचक हैं, और उन्होंने नवंबर, 2016 में रातोंरात की गई नोटबंदी की भी कड़ी आलोचना की थी, और कहा था कि इस कदम से नकदी-आधारित अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई.

भारतीय आर्थिक नीतियों पर दीपक एंड नीरा राज सेंटर द्वारा न्यूयार्क स्थित यूनिवर्सिटी में आयोजित लेक्चर के दौरान केंद्रीय वित्तमंत्री ने कहा, "...मैं एक महान स्कॉलर के तौर पर रघुराम राजन का सम्मान करती हूं, जिन्होंने उस वक्त भारतीय केंद्रीय बैंक में काम करना कबूल किया, जब भारतीय अर्थव्यवस्था उछाल पर थी..."

निर्मला सीतारमण अपने लेक्चर के दौरान रघुराम राजन के उस हालिया बयान - सिर्फ आंतरिक जुड़ाव और आर्थिक वृद्धि से ही भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत होगी, बहुसंख्यकवाद से नहीं - को लेकर श्रोताओं की ओर से पूछे गए सवाल का जवाब दे रही थीं. इस बयान का निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माना जा रहा है.

ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट में 9 अक्टूबर को ओ.पी. जिन्दल लेक्चर में रघुराम राजन ने कहा था, "लम्बे समय में, मुझे लगता है, बांटने वाले, और लोकलुभावन बहुसंख्यकवाद के स्थान पर आंतरिक जुड़ाव और आर्थिक वृद्धि ही भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की जड़ें मज़बूत करेगा... सो, इस तरह का बहुसंख्यकवाद कुछ वक्त तक चुनाव तो जिता सकता है, लेकिन यह भारत को अंधेरे, अनिश्चित रास्ते पर ले जा रहा है..."

दोनों अर्थशास्त्रियों (डॉ मनमोहन सिंह और रघुराम राजन) की आलोचना करने के लिए चुनावी भाषणों में बीजेपी द्वारा इस्तेमाल किए गए वाक्यों में से एक को दोहराते हुए वित्तमंत्री ने कहा, "आरबीआई के गवर्नर के रूप में राजन के ही वक्त सिर्फ चमचे नेताओं की फोन कॉलों के आधार पर ये ऋण दे दिए गए थे, और भारत के सरकारी बैंक उस दलदल से बाहर आने के लिए आज तक सरकार द्वारा निवेश किए जाने की बाट जोह रहे हैं..."

वित्तमंत्री ने कहा, "डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, और मुझे भरोसा है कि डॉ राजन सहमत होंगे कि डॉ सिंह के पास भारत को लेकर सतत सोचा-समझा विज़न होगा..." उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एसेट क्वालिटी रिव्यू किए जाने का आदेश देने के लिए रघुराम राजन का शुक्रिया अदा करना चाहती हैं.

भारत में नेतृत्व के केंद्रीकृत हो जाने को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, अगर कहीं महसूस किया जाता है कि भारत का नेतृत्व केंद्रीकृत हो गया है, तो मैं कहना चाहती हूं कि नेतृत्व के बहुत ज़्यादा लोकतांत्रिक हो जाने से भ्रष्टाचार को बहुत बढ़ावा मिला था... आखिर प्रधानमंत्री किसी भी कैबिनेट में बराबरी वालों के बीच अग्रणी होता है... भारत जैसे विविधताओं से भरे देश का नेतृत्व प्रभावी होना ही चाहिए... कुछ ज़्यादा ही लोकतांत्रिक नेतृत्व को संभवतः उदारवादियों से तो तारीफ मिल सकती है, लेकिन वह भ्रष्टाचार की गंदगी पीछे छोड़ जाता है, जिसे हम आज तक साफ कर रहे हैं..."

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।