कोरोना वायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के अपने गृहनगरों एवं गांवों की ओर पैदल ही लौटने की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को टिप्पणी की कि ''भय एवं दहशत'' कोरोना वायरस से बड़ी समस्या बनती जा रही है। शीर्ष न्यायालय ने इन लोगों के पलायन को रोकने के लिए उठाये जा रहे कदमों के बारे में केंद्र से मंगलवार तक रिपोर्ट देने को कहा है।
इस बीच, केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश जारी किया है कि जिलाधिकारी कोविड-19 के मद्देनजर की गई बंद की घोषणा के बाद अपने-अपने घरों को जाने का इंतजार कर रहे प्रवासी कर्मियों के भोजन एवं आश्रय का प्रबंध करने को अपनी निजी जिम्मेदारी बनाएं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की संयुक्त सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मंत्रालय ने रविवार को आदेश जारी कर दिया था कि मकान मालिक प्रवासी मजदूरों से महीने का किराया नहीं मांगे और उन्हें अपने मकान खाली करने को नहीं कहें।
बंद लागू किए जाने के कारण पिछले पांच दिनों में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बड़े शहरों से अपने गृहनगर या गांव जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं जिससे कोरोना वायरस को फैलने का खतरा बढ़ गया है। इस वायरस से विश्वभर में 34,500 से अधिक लोगों की जान ले ली है और 7.27 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं।
21 दिन के देशव्यापी बंद की वजह से बेरोजगार होने वाले हजारों प्रवासी कामगारों के लिये खाना, पानी, दवा और समुचित चिकित्सा सुविधाओं जैसी राहत दिलाने का अनुरोध करने वाली दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि वह कोई भी आदेश देने से पहले केन्द्र की स्थिति रिपोर्ट का इंतजार करेगी। पीठ ने अधिवक्ताओं अलख आलोक श्रीवास्तव और रश्मि बंसल की जनहित याचिकाओं पर वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से सुनवाई की।
केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये इन कामगारों के पलायन को रोकने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और संबंधित राज्य सरकारों ने इस स्थिति से निपटने के लिये आवश्यक कदम उठाये हैं।
श्रीवास्तव ने तमाम खबरों का हवाला दिया और व्यक्तिगत रूप से बहस करते हुये कहा कि प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे पर राज्यों के बीच परस्पर समन्वय और सहयोग का अभाव है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू में इन कामगारों के लिये दो दिन बसों की व्यवस्था की लेकिन अब उसने भी बस सेवा बंद कर दी है।
इस मामले में केन्द्र द्वारा हलफनामे पर स्थिति रिपोर्ट पेश करने के मेहता के कथन पर पीठ ने कहा, ''हम उन चीजों पर गौर नहीं करेंगे जिन पर सरकार पहले से काम कर रही है। हम केन्द्र की रिपोर्ट का इंतजार करेंगे।''
दूसरी याचिकाकर्ता रश्मि बंसल ने कहा कि इन कामगारों के लिये चिकित्सा और सुरक्षा के लिये आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि पलायन कर रहे कामगारों के समूहों पर वायरस से बचाव करने वाली दवाओं का छिड़काव करवाया जा सकता है और इनके खानपान की व्यवस्था के लिए मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं को इससे जोड़ा जा सकता है।
बंसल के इस कथन पर पीठ ने टिप्पणी की, ''आप यह मान रही हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। उन्हें इन दोनों याचिकाओं पर एक समान जवाब दाखिल करने दीजिये।''
बंसल ने कहा कि इन कोरोना वायरस महामारी की दहशत और भय से शहर छोड़ने का प्रयास कर रहे इन कामगारों को समझाने बुझाने के लिये परामर्शदाताओं की सेवायें ली जानी चाहिए। इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ''यही भय और दहशत इस वायरस से कहीं ज्यादा बड़ी समस्या है। हम इस मामले में कोई निर्देश जारी करके भ्रम पैदा नहीं करना चाहते क्योंकि सरकार पहले से ही सारी चीजों को देख रही है।''
पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद इन याचिकाओं को मंगलवार के लिये सूचीबद्ध कर दिया। इस बीच, कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के क्रम में दूसरे प्रदेशों और जिलों से आने वाले प्रवासी कामगारों को "संक्रमण मुक्त करने के लिए" रविवार को उत्तर प्रदेश के बरेली बस अड्डे पर यातायात पुलिस और दमकल विभाग की टीम ने "सोडियम हाइपोक्लोराइड" के घोल का उन पर छिड़काव किया।
राज्य सरकार ने इस घटना को गम्भीरता से लेते हुए कहा है कि रसायन छिड़कने वाले कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस घटना की सपा, बसपा व कांग्रेस ने कटु आलोचना की है। विपक्ष के नेताओं के ट्वीट के बाद बरेली के जिलाधिकारी ने इस घटना से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं।हालांकि एक अधिकारी ने तर्क दिया कि इस प्रकार के छिड़काव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी प्राप्त है लेकिन प्राधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश भर में बंद के बीच महाराष्ट्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए 262 राहत शिविर बनाए हैं, जहां उन्हें भोजन और आश्रय मिलेगा। वहीं, गुजरात के सूरत शहर में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कथित रूप से उल्लंघन और पुलिसकर्मियों पर हमले के आरोप में 93 प्रवासी कामगारों को गिरफ्तार किया गया है।
इस बीच, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि सरकार कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये बंद के कारण प्रभावित प्रवासी समेत बेरोजगार कामगारों को सीधे नकद अंतरण करने के सुझाव पर विचार कर सकती है। देशव्यापी बंद के कारण इन लोगों की आजीविका पर असर पड़ा है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा द्वारा लिखा गया है.