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ISRO

चांद के लिए भेजा गया देश का दूसरा स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-2 मंगलवार की सुबह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह जानकारी दी। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने यान को चांद की कक्षा में पहुंचाने की प्रक्रिया के संबंध में सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा, ''यह कल सुबह (अंदाजन सुबह साढ़े आठ बजे से सुबह साढ़े नौ बजे के बीच) होगा। यह चुनौतीपूर्ण है।''

चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद इसरो कक्षा के अंदर स्पेसक्राफ्ट की दिशा में चार बार (21, 28 और 30 अगस्त को तथा 1 सितंबर को) और परिवर्तन करेगा। इसके बाद यह चंद्रमा के ध्रुव के ऊपर से गुजरकर उसके सबसे करीब- 100 किलोमीटर की दूरी की अपनी अंतिम कक्षा में पहुंच जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर 2 सितंबर को चंद्रयान-2 से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा।

इसरो ने बताया कि चंद्रमा की सतह पर 7 सितंबर 2019 को लैंडर से उतरने से पहले धरती से दो कमांड दिए जाएंगे, ताकि लैंडर की गति और दिशा सुधारी जा सके और वह धीरे से सतह पर उतरे। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को धरती पर से अंतरिक्ष में रवाना किया गया था। इसका प्रक्षेपण देश के भारी वजन उठानेवाले रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वीइकल- माक 3 (जीएसएलवी एमके 3) से किया गया था।

इस स्पेसक्राफ्ट के तीन खंड हैं, जिसमें ऑर्बिटर (वजन 2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड के साथ), लैंडर 'विक्रम' (1,471 किलोग्राम, चार पेलोड के साथ) और रोवर 'प्रज्ञान' 9 (वजन 27 किलोग्राम, दो पेलोड के साथ) शामिल हैं।

इसरो चीफ के सिवन ने कहा था, 'चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 की लैंडिंग के लिए इसकी स्पीड कम की जाएगी। विक्रम को चांद की सतह पर उतारने का काम काफी मुश्किल होगा। इस दौरान का 15 मिनट काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है। हम पहली बार सॉफ्ट लैंडिंग की करेंगे। यह तनाव का क्षण केवल इसरो ही नहीं बल्कि सभी भारतीयों के लिए होगा।'

सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलते ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास ही यह विशेषज्ञता है।

धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी लगभग 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है। चंद्रयान-2 में लैंडर-विक्रम और रोवर-प्रज्ञान चंद्रमा तक जाएंगे। चांद की सतह पर उतरने के 4 दिन पहले रोवर 'विक्रम' उतरने वाली जगह का मुआयना करना शुरू करेगा। लैंडर यान से डिबूस्ट होगा। 'विक्रम' सतह के और नजदीक पहुंचेगा। उतरने वाली जगह की स्कैनिंग शुरू हो जाएगी और फिर 6-8 सितंबर के बीच शुरू होगी लैंडिंग की प्रक्रिया।

लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा। रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा। इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।