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REUTERS/Chris Helgren

हाल ही में आम्रपाली मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से भारत का रिएलिटी सेक्टर और घरों के लाखों खरीदारों की पीड़ा फिर से चर्चा में आ गई है क्योंकि अधूरे और रुके प्रोजेक्ट्स की बढ़ती संख्या के चलते वीरान शहर बनाना जारी है। एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के आंकड़ों के अनुसार, देश के रियल एस्टेट की काली सच्चाई की भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के शीर्ष सात शहरों में 220 प्रोजेक्ट्स के लगभग 1.74 लाख घरों का निर्माण रुका पड़ा है।

एनारॉक की रिपोर्ट के अनुसार, "साल 2013 या इससे भी पहले लॉन्च हुए इन प्रोजेक्ट्स पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। जिन घरों का निर्माण रुका हुआ है उनकी कुल कीमत लगभग 1,774 अरब (1.774 लाख करोड़ रुपये) है। इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट्स या तो पैसों से संबंधित मुद्दों या कानूनी मामलों के कारण रुके हैं।"

लगभग 1.15 लाख घर (कुल अधूरे घरों का लगभग 66 प्रतिशत) खरीददारों को पहले ही बेचे जा चुके हैं, जिसके कारण वे मजबूरन मझधार में अटके हैं। अब वे या तो संबंधित डेवलपर या कानून के रहमो करम पर हैं। इन बेचे गए घरों की कुल कीमत लगभग 1.11 लाख करोड़ रुपये है।

आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा अधूरे घर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हैं, जहां 67 प्रोजेक्ट्स के 1.18 लाख घर अधूरे पड़े हैं, जिनकी कीमत 82.2 हजार करोड़ है। इनमें से लगभग 69 प्रतिशत (83,470 घर) बेचे जा चुके हैं।

एनसीआर में 98 प्रतिशत अधूरे प्रोजेक्ट्स सिर्फ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं, वहीं गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे शहरों में यह आंकड़ा कम है।

अधूरी परियोजनाओं के मामले में इसके बाद मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) का नंबर आता है, जहां पूरे शहर में 38,060 घर अधूरे पड़े हैं। ये घर 89 प्रोजेक्ट्स में हैं, वहीं एनसीआर में अधूरे घर वाले प्रोजेक्ट्स की संख्या 67 है।

इसके बाद पुणे आता है जहां 9,650 घरों के लगभग 28 प्रोजेक्ट्स लांबित हैं। इसके बाद हैदराबाद जहां 4,150 घर, बेंगलुरू में 3,870 घर अधूरे पड़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली का रेरा लाइसेंस रद्द कर दिया है और इसके प्रमुख अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए हैं। कोर्ट ने सरकारी कंस्ट्रक्शन कंपनी एनबीसीसी को इन अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने का निर्देश दिया है।

वहीं दूसरी तरफ जेपी इंफ्राटेक कॉर्पोरेट इंसोल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) से गुजर रहा है और उसने समाधान निकालने के लिए 270 दिनों की समय सीमा को पार कर दिया है। नेशनल कंपनी लॉ अपीलाट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने इस सप्ताह समाधान की प्रक्रिया को 90 दिनों के लिए और बढ़ा दिया है।

पहले से ही परेशान घर खरीददारों को इन कानूनी समस्याओं से और ज्यादा परेशानी हुई है।

जेपी के प्रोजेक्ट्स से नोएडा में 2011 में एक 2-बीएचके का फ्लैट खरीदने वाले संजीव साहनी का कहना है कि खरीददार अपना घर पाने के लिए अब तक दो करोड़ रुपये तक खर्च कर चुके हैं।

एक होम बायर्स एसोसिएशन के सदस्य साहनी ने आईएएनएस से कहा, "मैंने जिस टॉवर में घर खरीदा था, वह 50 प्रतिशत भी नहीं बना है। कोई थर्ड पार्टी भी अगर उसे बनाने की जिम्मेदारी लेती है तो भी उसे बनने में कम से कम तीन साल का समय लगेगा।"

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।