सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरPixabay

बिहार में चपरासी की नौकरी करने वाले की बेटी अब जज बन गई है। अदालत में ही चपरासी की नौकरी करने वाले गौरीनंदन अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी बेटी अर्चना ने अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। अर्चना के पति पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में क्लर्क हैं। वह बताती हैं कि इस सफलता में उनके पति ने भी उनका खूब साथ दिया।

अर्चना ने अपने पिता के सरकारी झोपड़ीनुमा क्वार्टर में ही जज बनने का सपना देखा था और आज वह सपना पूरा हो गया है। हालांकि, अर्चना को इस बात का अफसोस है कि इस खुशी के मौके पर उनके पिता मौजूद नहीं हैं।

अर्चना ने बताया, 'मेरे पिता गौरीनंदन प्रतिदिन किसी न किसी जज का टहल (काम) बजाते थे, जो बचपन में एक बच्चे को अच्छा नहीं लगता था। उसी स्कूली शिक्षा के दौरान ही उस चपरासी क्वार्टर में मैंने जज बनने की प्रतिज्ञा ली थी और आज ईश्वर ने उस प्रतिज्ञा को पूरा कर दिया है।'

'जज बनने के बाद अर्चना कहती हैं, 'सपना तो जज बनने का देख लिया था लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। शादीशुदा और एक बच्चे की मां होने के बावजूद मैंने हौसला रखा और आज मेरा सपना पूरा हो गया है।' पटना के कंकड़बाग की रहने वाली अर्चना का बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा में चयन हुआ है।

साधारण से परिवार में जन्मी अर्चना के पिता गौरीनंदन सारण जिले के सोनपुर व्यवहार न्यायालय में चपरासी पद पर थे। अर्चना ने शास्त्रीनगर राजकीय उच्च विद्यालय से 12वीं और पटना विश्वविद्यालय से आगे की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद शास्त्रीनगर राजकीय उच्च विद्यालय में वह छात्रों को कम्प्यूटर सिखाने लगीं। इसी बीच अर्चना का विवाह हो गया।

अर्चना कहती हैं कि विवाह के बाद उन्हें लगा कि अब उनका सपना पूरा नहीं हो पाएगा लेकिन परिस्थितियों ने करवट ली और वह पुणे विश्वविद्यालय पहुंच गईं, जहां से उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की। इसके बाद उन्हें फिर पटना वापस आ जाना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी। साल 2014 में उन्होंने बीएमटी लॉ कॉलेज पूर्णिया से एलएलएम किया। अर्चना ने अपने दूसरे प्रयास में बिहार न्यायिक सेवा में सफलता प्राप्त की है।

उन्होंने बताया, 'जज बनने का सपना तब देखा था, जब मैं सोनपुर जज कोठी में एक छोटे से कमरे में परिवार के साथ रहती थी। छोटे से कमरे से मैंने जज बनने का सपना देखा था, जो आज पूरा हुआ है।'

अर्चना बताती हैं कि उन्होंने पांच साल के बेटे के साथ दिल्ली में पढ़ाई भी की और कोचिंग भी चलाई और अपने सपने को हमेशा सामने रखा। वह कहती हैं कि हर काम में कठिनाइयां आती हैं लेकिन हौसला नहीं छोड़ना चाहिए और अपनी जिद पूरी करनी चाहिए।

पति के सहयोग का जिक्र करते हुए अर्चना बताती हैं कि उनके पति राजीव रंजन पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं और उनका सहयोग हर समय मिला।

अर्चना भावुक होकर कहती हैं, 'कल जो लोग मुझे तरह-तरह के ताने देते थे, आज इस सफलता के बाद बधाई दे रहे हैं। मुझे इस बात की खुशी है।'

अर्चना बताती हैं कि पिता की मौत के बाद तो जीवन की गाड़ी ही पटरी से ही उतर गई थी। इस समय उनकी मां ने उन्हें हर मोड़ पर साथ दिया। उन्हें परिवार के अलावा कई शुभचिंतकों का भी साथ मिला, जिन्हें भी वह शुक्रिया कहती हैं।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.