सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरCHANDAN KHANNA/AFP/Getty Images

पिछले 14 साल में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को अज्ञात स्रोतों से 8,721.14 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में देश की राष्ट्रीय पार्टियों को मिला 50% से ज्यादा फंड अज्ञात स्रोतों से आया. इसमें इलेक्टोरल बॉन्ड और अपनी इच्छा से दिया गया फंड भी शामिल है. वहीं, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को पिछले वित्त वर्ष में अन्य राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले 12 गुना ज्यादा यानी 437 करोड़ रुपये से अधिक राजनीतिक चंदा मिला.

इलेक्शन वॉचडॉग एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनाव आयोग के पास जमा राजनीतिक दलों के इनकम टैक्स रिटर्न और डोनेशन के स्टेटमेंट के विश्लेषण से यह जानकारी दी है.

गौरतलब है कि नियमों के मुताबिक 20,000 रुपये से कम चंदे का राजनीतिक दलों को स्रोत बताने की जरूरत नहीं होती. राजनीतिक दलों को ज्यादातर चंदा 20 हजार से कम रकम के रूप में ही मिलता है. एडीआर के प्रवक्ता ने बताया कि वित्त वर्ष 2004-05 से 2017-18 के बीच यानी 14 साल में अज्ञात स्रोतों से 8,721.14 करोड़ रुपये मिले हैं.

एडीआर ने 6 राष्ट्रीय पार्टियों के इनकम टैक्स रिटर्न और उन्हें मिले दान के आधार पर ये एनालिसिस की है. पार्टियों ने यह ब्योरा चुनाव आयोग को दिया था. इसके मुताबिक बीजेपी, कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 2017-18 में कुल आय 1293.05 करोड़ रुपये रही. इसमें से 689.44 करोड़ अज्ञात स्रोतों से आया. यह कुल आय का 53 फीसदी है.

बीजेपी और कांग्रेस को सबसे अधिक चंदा 'प्रूडेंट इलैक्टोरल ट्रस्ट'की ओर से मिला. यह बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा समर्थित कंपनी है, जिसमें परिसंपत्ति और टेलीकाम सेक्टर से जुड़ी बड़ी कंपनियां शामिल हैं.

साल 2017-18 के दौरान बीजेपी को अज्ञात स्रोतों से 553.38 करोड़ रुपये का चंदा हासिल हुआ है, जो कि राजनीतिक दलों में सबसे ज्यादा है. यह इस दौरान राजनीतिक दलों को अज्ञात स्रोतों से मिले कुल चंदे (689.44 करोड़ रुपये) का 80 फीसदी है, यानी बाकी राजनीतिक दलों का चार गुना अकेले बीजेपी को हासिल हुआ है. एक साल में राजनीतिक दलों को मिले 689.44 करोड़ रुपये के चंदे में से 215 करोड़ रुपये यानी 31 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड से हासिल हुए हैं.

पिछले 14 साल (वित्त वर्ष 2004-05 से 2017-18) के दौरान कांग्रेस और एनसीपी को बॉन्ड की बिक्री से 3573.53 करोड़ रुपये का चंदा हासिल हुआ है. चंदे की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल के दौरान राजनीतिक दलों को महज 16.80 लाख रुपये का ही चंदा कैश के रूप में मिला है. लेकिन 689.44 करोड़ रुपये का जो चंदा अज्ञात स्रोतों से हासिल हुआ है, वह किस रूप में दिया गया है, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई है.

बीजेपी का ज्यादा चंदा मिलने की एक वजह यह हो सकती है कारोबारी और व्यापार जगत में इसके समर्थकों की बड़ी संख्या है. साथ ही, केंद्र और देश के कई राज्यों में इसकी सरकार है. एडीआर के प्रवक्ता ने बताया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में चंदा देने वालों की जानकारी भी सार्वजनिक करनी जरूरी नहीं है. इसलिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले 50 फीसदी से ज्यादा चंदे के स्रोत का पता नहीं चल पाता.

CIC के जून, 2013 के आदेश के मुताबिक राजनीतिक दलों को RTI एक्ट के तहत लाया गया है, लेकिन अभी तक उन्होंने इस निर्णय का पालन करना स्वीकार नहीं किया है. यानी उनके चंदे के बारे में पारदर्श‍िता बिल्कुल नहीं रहती और जनता को नहीं पता चल पाता कि उन्हें चंदा कहां से मिले.

एडीआर ने इस पर चिंता जताई है. एडीआर का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई एक्ट में शामिल करने के 2013 के सीआईसी के आदेश के बावजूद उन्होंने अभी तक इसका पालन शुरू नहीं किया है. मौजूदा कानूनों के तहत पूरी पारदर्श‍िता संभव नहीं है.