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संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित किया गया जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का चहेता है जो 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले और इस साल फरवरी में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले समेत कई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड है।

अजहर (50) भगोड़ा है और उसने 2000 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की थी। वह भारत में हुए विभिन्न आतंकी हमलों के पीछे था और माना जाता है कि वह अपने संभावित निशानों पर हमले से पहले उनकी टोह लेने समेत खासी तैयारी करता है।

सुरक्षा परिषद की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति में अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने संबंधी प्रस्ताव फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा 27 फरवरी को लाया गया था। यह प्रस्ताव अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कड़ी में बीते 10 सालों में संयुक्त राष्ट्र में किया गया चौथा प्रयास था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किये जाने से उसकी संपत्ति जब्त रहेगी, यात्रा पर प्रतिबंध रहेगा और हथियार संबंधी पाबंदी रहेगी।

पुलवामा में 14 फरवरी को आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत के बाद बालाकोट में अजहर के आतंकी ठिकाने को भारतीय वायुसेना के विमानों ने 26 फरवरी के तड़के नष्ट कर दिया था। इंडियन एयरलाइंस के विमान के 1999 में अपहरण के बाद यात्रियों की रिहाई के बदले छोड़े जाने के दो दशक बाद तक अजहर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) का चहेता रहा है।

भारत द्वारा 31 दिसंबर 1999 को रिहा किये जाने के बाद पाकिस्तान के जेहादी हलको में उसका कद काफी बढ़ गया और आईएसआई ने कराची की बिनोरी मस्जिद के मौलवियों को तैयार किया कि वे अजहर के नेतृत्व को स्वीकार करें और इस तरह 31 जनवरी 2000 को जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना हुई।

अधिकारियों के मुताबिक "आत्मघाती हमलावरों के निर्माता" के तौर पर कुख्यात होने के अलावा जब वह भारतीय बलों की हिरासत में था तब उससे निपट पाना इतना मुश्किल नहीं था। अजहर से उसकी गिरफ्तारी के बाद 1994 में पूछताछ कर चुके एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि एक सैनिक द्वारा "थप्पड़" जड़ते ही वह कांप गया और न सिर्फ अपनी गतिविधियों बल्कि पाकिस्तान से संचालित हो रहे दूसरे आतंकवादी समूहों के बारे में भी बताने लगा।

बांग्लादेश के रास्ते एक पुर्तगाली पासपोर्ट पर भारत में दाखिल होने के बाद उसे फरवरी 1994 में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से गिरफ्तार किया गया था। यह संयोग से हुई गिरफ्तारी थी जब वह सज्जाद अफगानी के साथ एक ऑटो में सफर कर रहा था और उसे खानाबल में सैनिकों ने रोका।

खुफिया ब्यूरो में अपने करीब दो दशकों के कार्यकाल के दौरान कई बार अजहर से पूछताछ करने वाले सिक्किम पुलिस के पूर्व महानिदेशक अविनाश मोहानाने ने कहा, "दोनों ऑटोरिक्शा से भागने लगे जिसके बाद जवानों ने उन्हें पीछा कर पकड़ा। सैनिक सज्जाद अफगानी को कब्जे में लेकर खुश थे क्योंकि दूसरे के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी।"

पाकिस्तान के बहावलपुर में सेवानिवृत्त स्कूल प्रधानाध्यापक के बेटे अजहर को हमेशा लगता था कि भारत में उसकी हिरासत ज्यादा लंबी नहीं होगी और उसे छुड़ाने के प्रयास किये जाएंगे। उसकी रिहाई के लिये पहला प्रयास गिरफ्तारी के 10 महीने के अंदर ही किया गया जब दिल्ली से कुछ विदेशियों का अपहरण कर लिया गया और उनकी रिहाई के बदले अजहर को छोड़ने की मांग की गई। हालांकि उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस द्वारा बंधकों को सहारनपुर से मुक्त करा लेने के कारण यह साजिश नाकाम हो गई।

सहारनपुर में छापे के दौरान पुलिस ने उमर शेख नाम के एक अन्य आतंकी को गिरफ्तार किया जिसे बाद में अपहृत विमान आईसी814 के यात्रियों के बदले 1999 में अजहर के साथ छोड़ा गया था। बाद में वाल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर डेनियल पर्ल का सिर कलम करने के बाद उमर शेख कुख्यात हुआ। उसकी रिहाई का एक और प्रयास हरकत-उल-अंसार के छद्म संगठन अल-फरहान ने जुलाई 1995 में कश्मीर में पांच विदेशियों का अपहरण कर किया, जिनके बदले में उसने अजहर की रिहाई की मांग की थी।

कोट बलवल जेल में उसकी रिहाई के लिए 1999 में एक सुरंग भी खोदी गई लेकिन मोटा होने की वजह से वह सुरंग से निकल नहीं पाया। हालांकि इस दौरान सज्जाद अफगानी मारा गया।

अंतत: 1999 में अपहृत विमान आईसी-814 के यात्रियों की रिहाई के बदले भाजपा के नेतृत्व वाली तत्कालीन राजग सरकार ने अजहर को उमर शेख और मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ 'लतरम' को रिहा किया था। काठमांडू से नई दिल्ली की उड़ान को अजहर के साथी आतंकवादी अपहृत कर अफगानिस्तान के कांधार ले गए थे। अजहर ने रिहाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की और भारत में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया।