सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरNOAH SEELAM/AFP/Getty Images

द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की कुपोषण से मौत के मामलों में 1990 से 2017 के बीच दो तिहाई की गिरावट हुई है लेकिन 68 प्रतिशत बच्चों की मौत के लिए अब भी कुपोषण जोखिम बना हुआ है।

हर राज्य में बच्चों और माताओं में कुपोषण की वजह से बीमारियों तथा इसके संकेतकों की प्रवृत्तियों के 1990 से लेकर किये गये प्रथम समग्र आकलन का प्रकाशन इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनिशियेटिव ने किया है। नतीजे बताते हैं कि कुपोषण अब भी सभी आयु वर्ग के लोगों में बीमारियां का बड़ा जोखिम बना हुआ है।

अध्ययन के अनुसार कुपोषण के संकेतकों में जन्म के समय शिशु का कम वजन भारत में बच्चों की मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में शामिल है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों के अनुसार भारत में 2017 में जन्म के समय शिशु का वजन बहुत कम होने के मामले 21 प्रतिशत थे। इनमें मिजोरम में नौ प्रतिशत तो उत्तर प्रदेश में 24 प्रतिशत थे।

भारत में 1990 से 2017 के बीच कुपोषण से शिशुओं की मौत के मामलों में वार्षिक 1.1 प्रतिशत की दर से गिरावट आई है।

अध्ययन के अनुसार भारत में 2017 में बच्चों का कद बहुत कम रह जाने के मामले 39 प्रतिशत थे। निष्कर्षों के मुताबिक भारत में 2017 में बच्चों में एनीमिया के मामले में 60 प्रतिशत थे।

इस अध्ययन में राज्य केंद्रित परिणाम हर राज्य में जरूरी प्रयासों को रेखांकित करते हैं ताकि कुपोषण के विभिन्न संकेतकों के मामले में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनिशियेटिव एक संयुक्त पहल है जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन तथा 100 से अधिक भारतीय संस्थानों से जुड़े पक्षकार शामिल हैं।

आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा कि सरकार पोषण अभियान में अपनी प्रतिबद्धता के तहत पूरे देश में कुपोषण के संकेतकों पर निगरानी मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।