उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटोReuters

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों के लिए गुरुवार को संपन्न हुए मतदान का लाभ सत्तारूढ़ बीजेपी को उतना नहीं मिलता दिखाई दिया, जितना उसे पांच साल पहले मिला था। 'अली और बजरंगबली' की लड़ाई के बावजूद, बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण सुनिश्चित करने में विफल रही। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान जब यह क्षेत्र 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों को भूल नहीं पाया था - सांप्रदायिक तनाव अपने चरम पर था और मुसलमानों और जाटों के बीच विभाजन और वैमनस्य स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।

पांच साल के अंतराल ने इस दूरी को काफी हद तक मिटा दिया है और राष्ट्रीय लोकदल ने खाप नेताओं के साथ बैठकों की एक श्रृंखला के माध्यम से, यह सुनिश्चित किया कि मुस्लिम और जाट समाज के बीच की दूरियां घटें। हैरानी की बात है कि मुसलमानों ने पूरे समय चुप्पी बनाये राखी है और उन्होंने भड़काने के किसी भी प्रयास पर प्रतिक्रिया देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है और इससे धार्मिक आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण को रोका गया है। इसके अलावा इस क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले दलितों ने भी अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट नहीं की हैं, जिससे राजनीतिक दल उहापोह की स्थिति में हैं।

पांच साल पहले, तत्कालीन अखिलेश सरकार को इस क्षेत्र में एक मजबूत सत्ता-विरोधी लहर का सामना करना पड़ा, जिसका मुख्य कारण दंगे के दौरान उनकी सरकार द्वारा प्रदर्शित की गई उदासीनता थी। सपा विरोधी लहर इतनी तेज थी कि अखिलेश यादव ने पिछले साल कैराना उपचुनाव में प्रचार भी नहीं किया और उनकी उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने रालोद के टिकट पर सीट जीतने में कामयाबी हासिल की।

बीते चुनाव में यूपी में अखिलेश यादव की सरकार के खिलाफ ऐंटी-इन्कम्बैंसी का भी असर था। लेकिन, इस दौरान बीजेपी एक तरह से दोहरी ऐंटी-इन्कम्बैंसी झेल रही है। केंद्र और राज्य में उसकी सरकार है, ऐसे में उसे दोनों स्तरों पर लोगों की कुछ नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि दोनों जगहों पर सरकारें होने से बीजेपी को काम कराने में आसानी हुई है, लेकिन गन्ना का बकाया और बुलंदशहर में सीनियर पुलिस अफसर की हत्या जैसे मामले पार्टी के खिलाफ जा सकते हैं।

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ANI

इसके अलावा क्षेत्र में संचालित होने वाले बूचड़खानों को बंद करने के कारण राज्य सरकार विशेष रूप से निशाने पर है क्योंकि मांस व्यापारियों और निर्यातकों का जीवन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है।

इस बार बीजेपी के सामने एकजुट विपक्ष की चुनौती है। पिछली बार एसपी, बीएसपी, आरएलडी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार एसपी-बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन के चलते यूपी में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। कांग्रेस इस गठजोड़ का हिस्सा नहीं है, लेकिन यूपी की बेहद कम सीटों पर उसका प्रभाव है। ऐसे में महागठबंधन की ओर से बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है और उसका विरोध करने वाले मतदाताओं के लिए एक विकल्प रहेगा।

कई सीटों पर बीजेपी को स्थानीय उम्मीदवारों के खिलाफ ऐंटी-इन्कम्बैंसी का भी सामना करना पड़ सकता है। 2014 में जब ये चेहरे मैदान में थे तो इनमें से ज्यादातर पहली बार लड़ रहे थे। लेकिन अब 5 साल तक सांसद रहने के बाद उन्हें ऐंटी-इन्कम्बैंसी का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति को भांपते हुए बीजेपी ने कई जगहों पर टिकट बदले भी हैं, लेकिन अब भी यह फैक्टर पार्टी के लिए चिंता का कारण हो सकता है।