मोदी सरकार 2.0 में सोमवार को केंद्रीय कानून मंत्री के रूप में कामकाज संभालने के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न तो वह और न ही उनका मंत्रालय न्यायिक नियुक्तियों पर खानापूर्ति की भूमिका निभाएंगे। उन्होंने कहा कि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के साथ परामर्श में एक पक्ष के तौर पर काम करेंगे।
प्रसाद ने कहा कि कानून मंत्रालय न्यायिक नियुक्तियों में 'पोस्ट ऑफिस' नहीं बनेगा बल्कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के साथ परामर्श में हिस्सेदार के तौर पर काम करेगा।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा गठित करने के लिए सभी पक्षों के साथ बातचीत तेज करना चाहती है।
पदभार संभालने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में प्रसाद ने कहा, 'कानून मंत्री और कानून मंत्रालय एक पक्ष हैं। जाहिर तौर पर कलीजियम सिस्टम को उचित सम्मान दे रहे हैं।' कानून मंत्री ने आगे कहा, 'हम अपना पक्ष रखेंगे और नियुक्तियों को तेज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के साथ बातचीत में पक्ष बने रहेंगे।'
मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में कई बार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में नियुक्ति के लिए कलीजियम की सिफारिशों को विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए लौटा दिया था। सरकार कहती रही है कि कानून मंत्रालय केवल खानापूर्ति की भूमिका में नहीं है, जो महज फाइलों को स्वीकार करता रहेगा। प्रसाद का बयान सरकार की इस नीति को दोहराता है।
देशभर की जिला और अन्य निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 5000 से अधिक पद खाली हैं। इसके मद्देनजर नवनियुक्त कानून मंत्री ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि न्यायपालिका में अच्छे लोग आएं। चयन प्रक्रिया योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। समाज के वंचित तबके को योग्यता के आधार पर इसमें प्रवेश मिलना चाहिए।' सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा राज्यों के अधिकारों का हनन नहीं करेगी। निचली अदालतों में न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति की जिम्मेदारी संबंधित हाई कोर्टों और राज्य सरकारों की है।