सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरAmitesh Gupta /@amiteshspeaks/ Twitter

पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 की रात को घोषित की गई नोटबंदी को हुए दो साल का समय बीत चुका है. भारतीय अर्थव्यवस्था पर ख़ासा असर करने वाले इस कदम को कइयों ने सराहा तो कई लोगों ने आलोचना भी की. इस बीच एक अखबार की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.

हिंदी अखबार अमर उजाला की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2000 और 500 रुपए के नोट दो साल में ही चलने लायक नहीं रह गए हैं. इन्‍हें एटीएम में भी नहीं डाला जा सकता. दस रुपए के नए नोटों पर भी ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है.

अखबार के मुताबिक समस्या इतनी गंभीर है कि खराब गुणवत्ता के कारण एटीएम मशीनें इन नोटों को वापस सिस्टम में नहीं ला पा रही हैं. गौरतलब है कि एटीएम में लगे हुए सेंसर खराब गुणवत्ता वाले नोट स्वीकार नहींकरते हैं.

बताया जाता है क‍ि नोटों में इस्‍तेमाल कागज की गुणवत्‍ता के चलते यह समस्‍या आई है. अगर ऐसा हुआ तो फ‍िर से नए नोट छापने का भारी खर्च सरकार को उठाना पड़ेगा. हालांक‍ि, सरकार का कहना है क‍ि उसने गुणवत्‍ता से कोई समझौता नहीं क‍िया है.

रिपोर्ट के मुताबिक,दिक्कत इतनी बड़ी है कि 2,000 रुपये और 500 रुपये के नए नोटों के अलावा, 2018 में जारी किए गए नए 10 नोट भी 'इस्तेमाल करने लायक नहीं' रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों ने इन नोटों को जारी नहीं करने वाले नोटों की कैटेगरी में डाल दिया है.

अमर उजाला ने वित्त मंत्रालय की बैंकिंग डिवीजन के अधिकारी का हवाला देते हुए कहा कि, सरकार ने गुणवत्ता के साथ किसी भी तरह के समझौते से इनकार करते हुए कहा है कि नकली नोट रोकने के लिए नए नोटों में कड़ी सुरक्षा के फीचर्स दिए गए हैं.

बैंकों से जुड़े सूत्र अब इन नोटों के खराब होने का ठीकरा भी उपभोक्ताओं पर हो फोड़ रहे हैं. उनका कहना है, "नए नोट इसलिए खराब हो रहे हैं क्योंकि भारत में लोग नोटों को साड़ी या धोती से बांधते हैं."

बैंक 'गैर-जारी करने योग्य' कैटेगरी के तहत नोट्स को तब डालते हैं जब नोट एटीएम में इस्तेमाल करने लायक या जनता को दिए जाने लायक नहीं रह जाते हैं. बैंक इस कैटेगरी में गंदे, गंदे या खराब हुए नोट्स को डालते हैं. इसके बाद नोटों को चलन से बाहर करने के लिए आरबीआई को भेज देते हैं.