ऐसे वक्त में जब एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत थोड़ी लड़खड़ाती दिख रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पूर्व रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाकर बाजारों को चौंका दिया। अभी अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत के सामने कई चुनौतियां हैं और इस वक्त अमेरिका के साथ कारोबारी रिश्ते भी तनावपूर्ण हैं।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को गृह मंत्री बनाया गया है। उन्हें केंद्रीय सुरक्षा बलों पर नियंत्रण के साथ आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली है। हालिया चुनाव में मोदी की प्रचंड जीत के मुख्य शिल्पी माने जाने वाले शाह ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह की जगह ली है, जिन्हें अब रक्षा मंत्री बनाया गया है।
शाह के सरकार में शामिल होने की सूरत में उन्हें वित्त मंत्री बनाए जाने की अटकलें थीं, लेकिन आखिरकार यह जिम्मेदारी सीतारमण को मिली, जो इकनॉमिक्स बैकग्राउंड से आती हैं। वह मोदी के पहले कार्यकाल में वाणिज्य मंत्री थीं और थोड़े समय के लिए वित्त मंत्रालय में जूनियर मिनिस्टर भी रही थीं।
शाह और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के उलट सीतारमण को राजनीतिक रूप से लाइटवेट माना जाता है। जेटली पहले ही खराब सेहत के मद्देनजर सरकार में शामिल नहीं होने की इच्छा जता चुके थे।
59 साल की सीतारमण मोदी 2.0 कैबिनेट में सबसे वरिष्ठ महिला हैं और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी के बाद वित्त मंत्रालय की अगुआई करने वाली अबतक की दूसरी महिला हैं।
सीतारमण को वित्त मंत्री बनाए जाने पर मुंबई में रोवान कैपिटल अडवाइजर्स के संस्थापक योगेश नगांवकर कहते हैं, 'यह बड़ा ही चौंकाने वाला और बहुत ही अप्रत्याशित खबर है। बाजार की उनसे शुरुआती अपेक्षा यह है कि वह तरलता से जुड़ी चिंताओं को कैसे दूर करती हैं। ग्रोथ हासिल करने के लिए हमें मार्केट में अच्छी तरलता चाहिए।'
नगांवकर ने कहा कि वित्त मंत्रालय पीयूष गोयल को मिलना चाहिए था, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और पिछली सरकार में जेटली की अस्वस्थता के वक्त 2 बार वित्त मंत्रालय की कमान भी संभाल चुके हैं। गोयल अब रेलवे और वाणिज्य मंत्री हैं।
सीतारमण को ऐसे वक्त में वित्त मंत्रालय की कमान मिली है जब उद्योग जगत की तरफ से सरकार पर इस बात का दबाव है कि भारत की 2.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में सुस्ती को दूर करने के लिए तत्काल कुछ कारगर कदम उठाए जाएं।
घरेलू और वैश्विक उपभोक्ता मांग में नरमी से भारत का मैन्यूफैक्चरिंग व सर्विस सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। भारत शायद जनवरी-मार्च तिमाही में चीन के हाथों दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था का तमगा भी खो सकता है। शुक्रवार को ही जारी हुए इस तिमाही के नतीजों से पता चलता है कि भारत की ग्रोथ रेट गिरकर 5.8 प्रतिशत रह गई है। पिछले साल यह आंकड़ा 8.1 प्रतिशत था। इस तरह वित्त वर्ष 2018-19 में जीडीपी ग्रोथ 7 प्रतिशत से नीचे 6.8 प्रतिशत रहा।
सरकार पहले ही मोदी के दूसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में कुछ बड़े आर्थिक सुधारों को लागू करने पर विचार कर रही है। सरकार के मुख्य थिंक टैंक के एक शीर्ष अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि आर्थिक सुधारों में सरकारी संपत्तियों के निजीकरण और बिजनस के लिए श्रम व जमीन से जुड़े नियमों में ढील पर फोकस किया जा सकता है।
कृषि क्षेत्र और किसानों की समस्याओं के अलावा रोजगार में कमी की वजह से मोदी की पिछली सरकार को सबसे ज्यादा आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। उम्मीद की जा रही है कि सरकार बेरोजगारी से जुड़े आकंड़ों को जल्द जारी करेगी, जिसे काफी वक्त से रिलीज नहीं किया गया है।