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सांकेतिक तस्वीरPTI

देहरादून की एक अदालत ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में आठ लोगों को जेल की सजा सुनाई है। विशेष पॉक्सो न्यायाधीश रमा पांडे ने डेढ़ साल पहले एक बोर्डिंग स्कूल में एक नाबालिग छात्रा के साथ उसके सीनियर छात्रों द्वारा किये गये सामूहिक दुष्कर्म और गर्भपात कराने के मामले में सोमवार को मुख्य रूप से दोषी बालिग छात्र सरबजीत को सर्वाधिक 20 साल कारावास की सजा सुनाई जबकि उसके तीन अन्य नाबालिग साथियों को ढाई-ढाई साल की कैद की सजा सुनाई। अदालत ने स्कूल प्रशासन पर 10 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है, जो पीडि़ता को दिए जाएंगे।

जिला शासकीय अधिवक्ता जीडी रतूडी ने बताया कि सरबजीत को पॉक्सो एक्ट की धारा छह के तहत दोषी पाया गया। इस मामले में स्कूल प्रबंधन के भी चार लोगों को अदालत ने सजा सुनाई है जिनमें स्कूल के प्रधानाचार्य जीतेंद्र कुमार शर्मा को तीन साल तथा निदेशक लता गुप्ता, प्रशासनिक अधिकारी दीपक मल्होत्रा और उनकी पत्नी तनु मल्होत्रा को नौ-नौ साल के कारावास की सजा दी गयी है।

इन सभी को घटना का पता चलने के बाद स्कूल की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उसे महीनों तक छिपाने, पीड़ित छात्रा का गर्भपात कराने तथा बात उजागर करने पर उसे स्कूल से निकाले जाने की धमकी देने का दोषी पाया गया है। अदालत ने स्कूल प्रबंधन पर भी 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है जो पीड़िता को दिए जायेंगे।

कोर्ट ने आरोपी आया मंजू को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। गौरतलब है कि इस मामले में जिन तीन नाबालिगों को दोषी ठहरा सजा सुनाई गई है, उन्हें पिछले साल किशोर न्याय बोर्ड ने बरी कर दिया था। इन तीनों को कोर्ट ने तीन दिन के भीतर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश होने को कहा है। वकील जेडी रतूड़ी ने इस संबंध में बताया कि इस मामले को पीड़िता के परिजनों से भी छिपाया गया था।

हाईस्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा के साथ सरबजीत तथा अन्य तीन छात्रों ने अगस्त 2018 में स्कूल परिसर में ही सामूहिक दुष्कर्म किया था। इस घटना का कुछ महीनों बाद छात्रा के गर्भवती होने पर पता चला जब उसने इसकी जानकारी स्कूल प्रबंधन से जुड़े लोगों को दी। लेकिन उन्होंने पीड़ित छात्रा को ही चुप रहने की धमकी दी और उसका गर्भपात करवा दिया।

जब छात्रा की हालत बिगड़ी तो उसी स्कूल में पढ़ने वाली उसकी बहन ने अपने पिता को इसके बारे में बताया जिसके बाद उन्होंने पुलिस में इस घटना की रिपोर्ट दर्ज करायी।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.