देशभर में जितनी शराब की खपत होती है उसमें से करीब आधाी शराब अकेले पांच दक्षिणी राज्यों में पी जाती है, इसके बावजूद शराब से मिलने वाले राजस्व का इन राज्यों के कुल राजस्व में मात्र 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा ही है।
देशव्यापी लॉकडाउन (बंद) की वजह से हो रहे राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए कुछ राज्यों में शराब पर कर भी बढ़ाया गया है। दिल्ली में तो शराब बोतल के अधिकतम खुदरा मूल्य पर 70 प्रतिशत 'कोविड-19 उपकर' लगाया गया है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रपट के मुताबिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में 45 प्रतिशत शराब की खपत होती है, लेकिन शराब से इनकी राजस्व आय मात्र 10-15 प्रतिशत है।
इसमें भी तमिलनाडु और केरल को शराब से 15 प्रतिशत राजस्व मिलता है। वहीं आंध्रप्रदेश और कर्नाटक को इससे 11 प्रतिशत और तेलंगाना को उनके कुल राजस्व का 10 प्रतिशत राजस्व ही प्राप्त होता है। दिल्ली इस सूची में तीसरे स्थान पर आता है। दिल्ली अपने राजस्व का 12 प्रतिशत शराब से कमाती है लेकिन देश के कुल शराब उपभोग में इसकी हिस्सेदारी मात्र 4 प्रतिशत है।
देश के कुल शराब उपभोग में सबसे अधिक हिस्सेदारी 13 प्रतिशत तमिलनाडु की है। वहीं कर्नाटक में 12 प्रतिशत खपत होती है। दक्षिण के पांच राज्यों में शराब पर सबसे अधिक कर केरल में है। वहीं देश में शराब पर सबसे अधिक कर महाराष्ट्र में वसूला जाता है। लेकिन राज्य के राजस्व में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ आठ प्रतिशत है। वहीं यह शराब की राष्ट्रीय खपत का सिर्फ आठ प्रतिशत उपभोग भी करता है।
दक्षिण के पांच राज्यों समेत महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान का कुल मिलाकर शराब खपत में 75 प्रतिशत हिस्सा है। लेकिन शराब की दुकानों को फिर खोलना इन राज्यों के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन सकती है, क्योंकि देश में कोरोना वायरस के 85 प्रतिशत से ज्यादा मामले इन्हीं राज्यों में सामने आए हैं।
इसमें सबसे अधिक 31.2 प्रतिशत मामले महाराष्ट्र में हैं। उसके बाद दिल्ली में 10 प्रतिशत, तमिलनाडु में 7.6 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में सात प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 5.9 प्रतिशत कोरोना वायरस के मामले हैं। इनमें सबसे कम मामले केरल में हैं जो एक प्रतिशत से भी नीचे हैं।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा द्वारा लिखा गया है.