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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास नकदी परिपूर्ण है और इस लिहाज से वह अपने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के मुकाबले भारी फायदे में दिख रही है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने इस आशय की रिपोर्ट प्रकाशित की है। एजेंसी ने बीजेपी के पूर्व समर्थकों, विपक्षी नेताओं, कारोबारियों और ऐक्टिविस्ट्स से इंटरव्यू कर फंडिंग को समझने की कोशिश की है। आम चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी दोबारा जीत की उम्मीद कर रही है तो वहीं कांग्रेस को बड़े फेरबदल की आस है।

इंटरव्यू के दौरान पता चला कि मोदी को कारोबारियों के समर्थन के कारण अभूतपूर्व लाभ मिलता दिख रहा है। देश में चुनाव अभी चल रहे हैं और नतीजे 23 मई को आएंगे। बीजेपी के वॉर चेस्ट (जंग लड़ने के लिए फंड्स रिजर्व) की बदौलत पार्टी सोशल मीडिया विज्ञापनों पर भारी-भरकम राशि खर्च कर रही है। वॉर चेस्ट भरे होने के कारण ही प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी के दूसरे नेता देशभर में व्यापक स्तर पर प्रचार कर पा रहे हैं।

दो फर्मों से मिले डेटा के मुताबिक सत्तारूढ़ पार्टी ने फेसबुक और गूगल विज्ञापनों पर फरवरी के बाद से कांग्रेस की तुलना में 6 गुना ज्यादा पैसे खर्च किए हैं। ऐसे में मोदी का बड़े पैमाने पर प्रचार संभव हो पा रहा है। इस पैसे की वजह से ही बीजेपी असाधारण रूप से शक्तिशाली स्थिति में पहुंच गई है।

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि बीजेपी के पास इतना फंड है कि वह भारत में हेलिकॉप्टरों के बेड़े में से ज्यादातर को 90 दिनों के लिए हायर कर सकती है और ऐसे में चॉपर बुक करने में विपक्षियों की मुश्किल बढ़ जाती है।

कांग्रेस के एक अन्य दिग्गज नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'हमने इतनी असमानता के साथ कोई चुनाव कभी नहीं देखा। आर्थिक रूप से हम उनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं।' वह और कांग्रेस के एक और उच्च पदाधिकारी ने कहा कि उनका अनुमान है कि बीजेपी उनसे 10 गुना ज्यादा खर्च करेगी।

वहीं, बीजेपी के दो पदाधिकारियों ने खर्च का आंकड़ा देने से इनकार कर दिया लेकिन एक ने यह जरूर कहा, 'निश्चित रूप से बीजेपी के पास बड़ा वॉर चेस्ट है और कांग्रेस की तुलना में खर्च करने के लिए ज्यादा फंड्स मौजूद है।'

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस को काफी कम फंड मिला है क्योंकि ऐसी धारणी बन गई है कि वह चुनाव नहीं जीत सकती है। मोदी के खिलाफ चुनाव में राष्ट्रीय गठबंधन बनाने में भी विपक्षी पार्टी नाकाम रही है। यही नहीं, नौकरियों की कमी और किसानों की परेशानी को लेकर कांग्रेस पार्टी बीजेपी के खिलाफ असंतोष को भुनाने में भी संघर्ष करती दिख रही है।

सर्वेक्षणों में भारत के सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर मोदी सबसे आगे हैं। 1.3 अरब की आबादी वाले देश में 39 दिनों तक चलने वाले चुनाव में पैसा काफी महत्वपूर्ण है। काफी समय से चुनावों में वोटरों को लुभाने के लिए उपहार या पैसे देने का चलन रहा है। अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने 26 मार्च से लेकर अब तक 45.6 करोड़ डॉलर मूल्य की चीजें और कैश बरामद किया है।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरReuters

कार्नेगी ऐन्डोमेंट फॉर इंटरनैशनल पीस साउथ एशिया प्रोग्राम के निदेशक मिलन वैष्णव ने कहा, 'यह वॉर चेस्ट बीजेपी को महत्वपूर्ण लाभ देता है। पैसा न सिर्फ मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं के नेटवर्क और प्रभावशाली व्यक्तियों को भी बनाए रखने के लिए आवश्यक है।'

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार के अधिकतम खर्च की सीमा 70 लाख रुपये तय की गई है लेकिन इस सीमा से ज्यादा खर्च किए जाने के आरोप लगते रहते हैं और राजनीतिक दलों को स्वतंत्र तरीके से खर्च करने की छूट रहती है।

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) का अनुमान है कि इस साल के चुनाव में 8.6 अरब डॉलर खर्च होंगे जो 2014 के चुनाव की तुलना में दोगुना है। इतना ही नहीं, OpenSecrets.org के अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हुए खर्चे (6.5 अरब डॉलर) को भी पार कर जाएगा। मोदी के कार्यकाल में हाल के सुधारों ने पार्टी की खर्च करने की ताकत बढ़ा दी है।

दरअसल, कंपनियां अब नए इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए अज्ञात रूप से पार्टियों को फंड दे सकती हैं और अब उनके लिए डोनेशन की कोई सीमा नहीं है। ऐक्टिविस्ट्स का कहना है कि इसके कारण ही नेताओं और कारोबारियों का गठजोड़ बनता है। RTI और बीजेपी की फाइलिंग के जरिए रॉयटर्स को मिले डेटा के मुताबिक पिछले साल पहली किस्त के रूप में करीब 95 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड्स बीजेपी को मिले थे। बीजेपी को वित्तीय फायदे के बारे में पूछने पर पार्टी के प्रवक्ता अनिल बलूनी ने कहा, 'यह कोई अनुचित लाभ नहीं है।'

बलूनी ने आगे कहा, 'बीजेपी ज्यादातर डोनेशन चेक और बॉन्ड्स के जरिए लेने में यकीन करती है... हम देश में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी हैं।' उन्होंने कहा कि उनके पास फंड्स कहां से आया और उसके खर्च की सूचना नहीं है।

2014 में कारोबारी जगत का मोदी को अपार समर्थन मिला था। 2016 में नोटबंदी का फैसला हुआ और कारोबारियों में थोड़ी नाराजगी देखी गई लेकिन मोदी वापस समर्थन पाने में कामयाब होते दिखे हैं। कंसल्टिंग फर्म एसकेवाय एडवाइजर्स के प्रमुख और कारोबारी सुनील अलाघ कहते हैं, 'मोदी ने कारोबार को आसान बनाया है।'

एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी भी मोदी के गृह राज्य गुजरात से आते हैं और उन्होंने सार्वजनिक मंचों से प्रधानमंत्री की प्रशंसा भी की है। 2016 में जियो के लॉन्च के समय उन्होंने पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल विज्ञापन में भी किया था। हालांकि पिछले महीने उन्होंने दक्षिण मुंबई से कांग्रेस के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा का समर्थन किया था।

पिछले साल वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा घोषित नई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत कोई व्यक्ति या कंपनी अज्ञात रूप से 1000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के बॉन्ड्स खरीद सकती है और उसे एसबीआई में पार्टी के खाते में जमा करा सकती है। जेटली ने इसे पारदर्शी बताया था। हालांकि ऐक्टिविस्ट्स की राय अलग है।

दिल्ली स्थित असोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा, 'अगर आप डोनर को नहीं जानते और आप नहीं जानते किसे पैसा दिया गया तो पारदर्शिता कहां है? संदिग्ध डोनेशन को अब वैध बना दिया गया है।'