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सांकेतिक तस्वीरएएनआई

बीते काफी समय से हिंसा का दंश झेल रहा जम्मू-कश्मीर देश का सबसे अशांत क्षेत्र बना हुआ है। आतंकी गतिविधियों, स्थानीय प्रदर्शनों और आतंक विरोधी कार्रवाई में लगातार सैनिकों और आम नागरिकों की जान जाती रही है। केंद्र सरकार ने सोमवार को संसद में बताया कि जम्मू कश्मीर में 2017 से 2019 के बीच आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में सशस्त्र बलों के 251 जवानों और 118 आम नागरिकों की जान गई।

संसद में पूछे गए एक सवाल के लिखित उत्तर के रूप में रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 2017 में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में सशस्त्र बलों के 80 जवानों और 40 नागरिकों की जान गई। श्रीपद नाइक ने बताया कि 2018 और 2019 में क्रमश: इनकी संख्या 91 और 39 तथा 80 और 39 थी।

श्रीपद नाइक ने एक अन्य सवाल के जवाब में बताया कि 2019 में नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ के 138 मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों के संयुक्त और आपसी तालमेल आधारित प्रयासों के फलस्वरूप साल 2019 में जम्मू कश्मीर में 157 आतंकवादियों को मार गिराया गया था।

हाल ही में जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने बताया था कि पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन कई गुना ज्यादा हो गया है। दिलबाग सिंह के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में सशस्त्र आतंकवादियों को घुसाने और शांति भंग करने के लिए पाकिस्तान ऐसी हरकतें करता है। उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि पड़ोसी देश के नापाक मंसूबों को नाकाम करने के लिए हमारी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत है।

दिलबाग सिंह ने आगे कहा कि नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान के मंसूबे को नाकाम करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था मजबूत है। डीजीपी ने यह भी कहा कि घाटी के युवाओं में आतंकवाद से जुड़ने का रुझान घट रहा है। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके लिए कोई पुनर्वास नीति विचाराधीन है तो उन्होंने कहा कि सरकार युवाओं को साथ लाने और उनके विकास के लिए पहले से कई योजनाओं पर काम कर रही है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.