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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने शुक्रवार, 8 नवंबर को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को मिली हुई विशेष स्पेशल प्रटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी सुरक्षा हटाने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार ने सभी एजेंसिय़ों से मिले इनपुट के आधार पर यह फैसला लिया है।

हालांकि, गांधी परिवार अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा दिए जाने वाले 'जेड प्लस' सुरक्षा चक्र के घेरे में रहेगा। केंद्र सरकार के इस फैसले से गांधी परिवार को अवगत करवा दिया गया है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सीआरपीएफ के जिम्मेदारी संभालने के बाद एसपीजी सुरक्षा को उनके नई दिल्ली स्थित आवास से वापस ले लिया जाएगा।

कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस फैसले की तीखी आलोचना करते हुए इसे मोदी सरकार की निजी बदले की कार्रवाई बताया है। गांधी परिवार के करीबी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा कि इस फैसले से देश के उन 2 पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवारों की सुरक्षा के साथ समझौता हुआ है, जिन्होंने आतंक और हिंसा के खिलाफ कार्रवाई की थी।

अहमद पटेल ने ट्वीट किया, '2 पूर्व प्रधानमंत्री जिन्होंने आतंक और हिंसा के खिलाफ कदम उठाए थे, उनके परिवार की जिंदगी के साथ खिलावड़ करके बीजेपी निजी बदले के चरम पर उतर चुकी है।'

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा भी वापस ले ली गई थी। सिंह को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) द्वारा दिया गया 'जेड प्लस' सुरक्षा कवर प्राप्त है। इस फैसले के बाद अब पूरे देश में सिर्फ पीएम मोदी के पास ही एसपीजी का सुरक्षा कवच रह जाएगा।

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Reuters

इससे पहले, पूर्व प्रधानमंत्रियों एचडी देवगौड़ा और वीपी सिंह को प्राप्त एसपीजी कवर वापस ले लिया गया था। लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने 2018 में मृत्यु तक एसपीजी कवर के घेरे में रहे।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इंदिरा गांधी की उनके सुरक्षा गार्डों द्वारा हत्या करने के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए साल 1985 में एसपीजी की स्थापना की गई थी। साल 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद एसपीजी एक्ट में संशोधन किया गया और इसमें पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को अगले 10 साल तक एसपीजी सुरक्षा देने का प्रावधान किया गया।

साल 2003 में वाजपेयी सरकार में इस एक्ट में संशोधन किया गया और वह दस साल की सीमा को एक साल कर दिया गया। इसके साथ ही यह भी प्रावधान किया गया कि खतरे को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार सुरक्षा की समय सीमा तय करेगी।