सांकेतिक तस्वीर
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हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का ऐलान होते सियासी हलचल तेज हो गई है। 21 अक्टूबर को दोनों राज्यों में मतदान होगा और 24 अक्टूबर को मतगणना के साथ नतीजे आएंगे। 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हरियाणा में पहली बार सरकार बनाई थी। पांच साल सत्ता पर काबिज रहने के बाद अब उसके सामने दोबारा वापसी की चुनौती है।

भले ही विपक्ष बिखरा दिख रहा हो पर रोजगार जैसे मुद्दे बीजेपी को भी टेंशन दे रहे हैं। माना जा रहा है कि हरियाणा चुनाव में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। ऐसे में बीजेपी के लिए 'मिशन 75 प्लस' पूरा करना आसान नहीं होगा।

चुनाव के ऐलान के साथ ही सभी पार्टियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती 90 उम्मीदवार चुनने की है। कहा जा रहा है कि मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है क्योंकि इंडियन नैशनल लोकदल (आईएनएलडी), जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और स्वराज इंडिया जैसे दल आपस में कोई तीसरा मोर्चा नहीं बना पाए हैं। ये सभी अलग-अलग चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

चुनाव में बेरोजगार युवा, किसान, पानी की समस्या और मौजूदा सरकार के वादा पूरा करने या ना करने को मुद्दा बनाया जाने वाला है। विपक्ष भी इन्हीं मुद्दों को लेकर मौजूदा बीजेपी सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। वहीं, सत्ताधारी बीजेपी पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति, मेरिट के आधार पर नौकरी, एनआरसी और राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार की सफलताओं पर भी चुनावी मैदान में उतरेगी।

शुरुआती माहौल से ही यह स्पष्ट है कि बीजेपी अनुच्छेद 370 के खात्मे को मुख्य मुद्दा बनाएगी। बीजेपी के कार्यकर्ता इसलिए भी उत्साहित हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी को सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, मौजूदा समय में विपक्ष बेहद कमजोर और बिखरा हुआ है। पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल की आईएनएलडी को एक के बाद एक झटके लगे हैं। पहले पार्टी दो फाड़ हुई, फिर एक-एक करके कई बड़े नेता और विधायक सत्ताधारी बीजेपी में शामिल हो गए। पार्टी में अभय सिंह चौटाला अब अकेले पड़ गए हैं।

वहीं, 2014 से पहले सत्ताधारी रही कांग्रेस गुटबाजी के चलते मुश्किलें झेल रही है। गुटबाजी खत्म करने के लिए चुनाव से ठीक पहले हाई कमान ने हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर को हटाकर उनकी जगह पर कुमारी शैलजा को नियुक्त कर दिया। इसके अलावा पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता और किरन चौधरी को चुनावी मैनिफेस्टो समिति की चेयरमैन बनाया गया।

दिल्ली की सत्ता पर आसीन आम आदमी पार्टी, मायावती की बीएसपी और दुष्यंत चौटाला की जेजेपी अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। हाल ही में जेजेपी और बीएसपी का गठबंधन टूटा है। जेजेपी लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव लड़ी थी लेकिन अब सब अलग-अलग लड़ रहे हैं। योगेंद्र यादव की स्वराज इंडिया भी कुछ सीटों पर उतर सकती है।

दूसरी ओर, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर का दावा है बीजेपी 90 में से 75 से ज्यादा सीटें ले आएगी। जब खट्टर से पूछा गया कि बीजेपी की लड़ाई किससे है तो उन्होंने कहा, 'विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है लेकिन कुछ सीटों पर मुकाबला जरूर होगा। गढ़ी सांपला किलोई (भूपेंद्र हुड्डा की सीट) में कांग्रेस से मुकाबला होगा। एलनाबाद (अभय चौटाला की सीट) पर आईएनएलडी से मुकाबला होगा। इसके अलावा कुछ गिनी-चुनी सीटों पर जेजेपी और निर्दलीयों से मुकाबला होगा।'

खट्टर ने यह भी कहा कि बीजेपी सभी 90 सीटों पर मजबूत है और जल्द ही उम्मीदवारों के नाम तय हो जाएंगे। वैसे बीजेपी के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करना ही टेढ़ी खीर साबित होने वाला है क्योंकि दूसरी पार्टियों से आए मौजूदा विधायक भी टिकट के दावेदार हैं। ऐसे में आखिरी 90 चुनना बड़ा सिरदर्द होने वाला है।

गौरतलब है कि 2014 में बीजेपी को 90 में से 47 सीटें मिली थीं और वह अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही थी। 2009 के विधानसभा चुनाव में उसे महज 9.05 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 33.2 फीसदी वोट मिले। इससे पहले बीजेपी आईएनएलडी की सहयोगी के रूप में काम करती रही थी।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।