सांकेतिक तस्वीर
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बीते कुछ दिनों की राजनीतिक गतिविधियों पर ध्यान दिया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आगामी लोकसभा चुनाव का राजनीतिक केंद्र बनते जा रहे हैं और दीदी की पूरी कोशिश हालिया घटनाक्रम को नरेंद्र मोदी बनाम स्वयं के रूप में प्रदर्शित कर विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के रूप में खुद को स्थापित करने की है.

सीबीआई की टीम शारदा चिटफंड मामले में रविवार को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर छापा मारने पहुंची तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ढाल बनकर सामने आ गईं. इस तरह उन्होंने इस घमासान को नरेंद्र मोदी बनाम ममता बनर्जी के बीच का बना दिया है. माना जा रहा है कि इसमें सियासी लड़ाई में बीजेपी और टीएमसी दोनों को अपने-अपने सियासी फायदे नजर आ रहे हैं.

दरअसल 2014 के बाद से पश्चिम बंगाल में बीजेपी का ग्राफ लगातार तेजी से बढ़ा है. लेफ्ट और कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी मुख्य विपक्षी दल बन चुकी है. लोकसभा चुनाव में 2019 में पार्टी राज्य पर नजरे गढ़ाए हुए है. सूबे की कुल 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. बीजेपी ममता बनर्जी के दुर्ग बंगाल में कमल खिलाने की कवायद में हर संभव कोशिश में जुटी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी नेता लगातार बंगाल की सियासत में सक्रिय है. ममता बनर्जी के निशाने पर एक समय लेफ्ट हुआ करता था, लेकिन 2014 के बाद उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया और लेफ्ट के बजाय बीजेपी को निशाने पर लेना शुरू कर दिया. हाल ही के दिनों में देखेंगे तो ममता बनर्जी ने बीजेपी की रथ यात्रा को निकलने नहीं दिया. इसके अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बंगाल में हेलीकाप्टर को उतरने की इजाजत नहीं दी, जिसके बाद उन्हें मोबाइल के जरिए रैली को संबोधित करना पड़ा.

बीजेपी शुरू से ही ममता बनर्जी को मुस्लिमपरस्त के तौर पर पेश करती रही है. बीजेपी आने वाले चुनाव में ममता की मुस्लिमपरस्ती की छवि को भुनाने की कोशिश में है. बीजेपी को इसका फायदा भी मिल रहा है. 2016 के विधानसभा चुनावों के बाद से बीजेपी का वोट शेयर लगातार बढ़ा है.

हालांकि, बीजेपी और टीएमसी के बीच में काफी अंतर है. लेकिन टीएमसी विरोधी वोट जिस तरह से लेफ्ट या कांग्रेस के खाते में जाने के बजाय अब बीजेपी में साथ खड़ा नजर आ रहा है, उससे बीजेपी के हौसले बुलंद हुए हैं. पंचायत चुनावों में राज्य में कुल 31,802 ग्राम पंचायत सीटों में से टीएमसी 20,848 सीटें जीतने में सफल रही. जबकि बीजेपी दूसरे नंबर पर 5,657 सीटें जीती. वहीं, सीपीएम केवल 1415 और कांग्रेस महज 993 सीटें ही जीत सकी थी.

पश्चिम बंगाल में 2018 में हुए उलुबेरिया लोकसभा और नवपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में भले ही टीएमसी ने जीत दर्ज की हो, लेकिन दोनों सीटों पर बीजेपी को सीपीएम और कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे. इसके अलावा इंडिया टुडे के पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज (पीएसई) सर्वे में भी पश्चिम बंगाल की 49 फीसदी जनता नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में देखना चाह रही है तो 25 फीसदी लोग ममता को पीएम बनाना चाहते हैं. इसके अलावा 46 फीसदी जनता ने माना है कि ममता बनर्जी को अमित शाह की रैली में बाधा पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं था.

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 17 फीसदी वोटों के साथ दो सीटें जीतने में सफल रही थी. लेफ्ट को भी दो सीटें मिली थी, जबकि 2009 की तुलना में उसे 13 सीटों का नुकसान हुआ था. जबकि बीजेपी को एक सीट का फायदा हुआ था. 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी 6 फीसदी वोटों की बढ़ोत्तरी के साथ 10 फीसदी वोट पाने में सफल रही थी. बीजेपी के तीन विधायक जीतने में सफल रहे. जबकि उसके गठबंधन को 6 सीटें मिलीं. इससे पहले बीजेपी का एक भी विधायक राज्य में नहीं था.

दरअसल बीजेपी और लेफ्ट के बीच सिमटती जंग के चलते दोनों पार्टियों को फायदा नजर आ रहा है. विपक्षी दल जनवरी के बाद दो बार ममता के बैनर तले एकजुट हुए हैं. पिछले दिनों कांग्रेस सासंद मौसम नूर ने टीएमसी का दामन थाम लिया है. राज्य में करीब 27 फीसदी मुस्लिम वोट है, बीजेपी से सीधा मुकाबला होने पर ये वोट ममता के साथ खड़ा नजर आएगा. इस तरह से दोनों पार्टियां ताजा विवाद में अपना-अपना सियासी फायदा देख रही हैं.