प्रवासी मजदूरों के लिए शनिवार को सीमित संख्या में बस चलाने के उत्तर प्रदेश प्रशासन के फैसले के बाद अपने घर पहुंचने की जल्दी में बसों में सीट के लिए झगड़ा करते मजदूरों से दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पूरी तरह पटी नजर आई जहां अफरातफरी और भगदड़ जैसे हालात बने हुए थे।
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के हजारों दिहाड़ी मजदूर कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद बस पकड़ने के लिए आनंद विहार, गाजीपुर और गाजियाबाद के लाल कुआँ क्षेत्र पहुंचे। लोगों की संख्या अत्यधिक होने और बस में जगह न होने के कारण कई मजदूर बसों की छत पर बैठ गए।
संक्रमण फैलने के खतरे के बीच सामाजिक दूरी के सारे नियम धरे रह गए और लोग बसों में जहां पांव टिकाने की जगह मिली वहीं खड़े नजर आए। इनमें से कुछ ने मास्क पहने थे लेकिन ज्यादातर लोगों ने संक्रमण से बचने के लिए मुंह पर रुमाल बांधा था।
पुलिस उपायुक्त (शाहदरा) दिनेश कुमार गुप्ता ने बताया कि शनिवार रात साढ़े नौ बजे तक आनंद विहार पर दस से पंद्रह हजार लोग मौजूद थे। गुप्ता ने कहा, "लगभग 60 से 70 बसें थीं। यात्री कतार में खड़े थे और बस में चढ़ रहे थे। मध्यरात्रि तक और पांच सौ बसें दिल्ली पहुंचेंगी।"
दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को ले जाने के लिए 570 बसें उत्तर प्रदेश की सीमा पर तैनात की गई हैं। गहलोत ने ट्वीट किया, "दिल्ली सरकार चाहती है कि सभी दिल्ली में रहें लेकिन जो उत्तर प्रदेश जाना चाहते हैं उनके लिए इंतजाम किए जा रहे हैं। दिल्ली सरकार की 570 बसें उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा तक छोड़ आएंगी। अगर उत्तर प्रदेश सरकार उनके लिए बसें भेजती है तो मुझे खुशी होगी।"
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि देशव्यापी लॉकडाउन के चलते सीमावर्ती जिलों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए उसने एक हजार बसों की व्यवस्था की है। गाजियाबाद के जिलाधिकारी अजय शंकर पांडेय ने पीटीआई-भाषा से कहा कि जिले से होकर जाने वाले मजदूरों को रोकने का प्रयास किया गया लेकिन वे अपने गांव जाने के लिए अड़े रहे। उन्होंने बताया कि पैदल चलकर अपने घर जाने वाले लोगों की सहायता के लिए 450 बसों को सेनिटाइज करने के बाद उपलब्ध कराया गया।
पैदल ही लंबी दूरी तय करने वालों को कुछ नेकदिल लोगों ने भोजन भी वितरित किया। दिल्ली और आसपास के राज्यों के औद्योगिक नगरों में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के हजारों मजदूर काम करते हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई के निवासी 23 वर्षीय संतोष सिंह ने कहा कि वह चरखी दादरी में प्लास्टिक के कारखाने में काम करते हैं और वहां से 110 किलोमीटर की यात्रा कर के आ रहे हैं। सीमा पर पहुंचने के बाद भी उन्हें बस में सीट नहीं मिली तो उन्होंने और बीस किलोमीटर पदयात्रा कर दूसरी बस मिलने की उम्मीद में लाल कुआँ पहुंचने का निर्णय किया।
सैकड़ों लोग लखनऊ, हरदोई, बरेली, कानपुर, प्रयागराज, अलीगढ़ और मुरादाबाद स्थित अपने घर पहुंचने के लिए बस पकड़ने की जद्दोजहद में सीमा पर घूमते दिखाई दिए लेकिन कोई उचित व्यवस्था न होने के कारण उन्हें जो बस मिली उसी में चढ़ गए। कुछ पुलिसकर्मी हाथ में डंडा लिए खड़े दिखाई दिए लेकिन उन्होंने भारी भीड़ को व्यवस्थित करने का काम नहीं किया।
सीमा पर तैनात एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "बुधवार से अब तक कितने मजदूरों ने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया है इसकी कोई संख्या ज्ञात नहीं है लेकिन वे पूरे दिन आते ही रहते हैं। शुक्रवार को पलायन अपने चरम पर था लेकिन हम उनके प्रवेश को नियंत्रित करने के सफल रहे।"
कुछ मजदूरों ने पीटीआई-भाषा से कहा कि लॉकडाउन के कारण उन्हें भोजन और आश्रय से वंचित रहने का डर था इसलिए उन्होंने पैदल ही घर जाने का निश्चय किया।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.