गृह मंत्री अमित शाह
गृह मंत्री अमित शाहReuters

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार, 4 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठक में बहुप्रतीक्षित नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को मंजूरी दे दी। विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किये जाने के कारण संबंधित देश से पलायन करने वाले हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध हो रहा है, जहां अधिकतर हिंदू प्रवासी रह रहे हैं। मुसलमानों को इस दायरे में शामिल नहीं किया गया है। सरकार इस बिल को इसी सप्ताह लोकसभा में पेश करने की तैयारी में हैं।

नागरिक संशोधन विधेयक के तहत 1955 के सिटिजनशिप ऐक्ट में बदलाव का प्रस्ताव है। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आकर भारत में बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है। इन समुदायों के उन लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो बीते एक साल से लेकर 6 साल तक में भारत आकर बसे हैं। फिलहाल भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए यह अवधि 11 साल की है।

बिल का विरोध कर रहे विपक्षी दलों ने इसे संविधान की भावना के विपरीत बताते हुए कहा है कि नागरिकों के बीच उनकी आस्था के आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए।

पूर्वोत्तर राज्यों में यह कह कर इस बिल का विरोध किया जा रहा है कि इससे मूल निवासियों की संख्या में कमी आएगी और आबादी का संतुलन बिगड़ेगा। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नगालैंड में इनर लाइन परमिट बरकरार रखने और असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में भी पुराने नियमों के तहत मूल निवासियों के संरक्षण का भरोसा दिया है।

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बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने नागरिकता संशोधन विधेयक की तुलना जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से संबंधित अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने वाले विधेयक से की है। बीजेपी संसदीय दल की मंगलवार को हुई बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह विधेयक उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने वाला विधेयक था।

राजनाथ सिंह ने सभी सांसदों से कहा कि गृह मंत्री अमित शाह जब इस विधेयक को पेश करें तो सभी लोग सदन में मौजूद रहें। इस बिल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।

इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है। अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा।