देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई में मचे घमासान पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सीबीआई के दो शीर्ष अफसरों - निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग में दखल देना जरूरी था क्योंकि यह दोनों खिसियानी बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे और इनके झगड़े की वजह से देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी की स्थिति बेहद हास्यास्पद हो गई थी और ऐसी स्थिति में सरकार का दखल देना बेहद जरूरी हो गया था.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसफ की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने अपनी बहस जारी रखते हुए कहा कि इन अधिकारियों के झगड़े से जांच एजेंसी की छवि और प्रतिष्ठा पर असर पड़ रहा था. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि केंद्र सरकार का मुख्य मकसद यह तय करना था कि जनता में इस प्रतिष्ठित संस्थान के प्रति भरोसा कायम रहे.
वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा, 'जांच ब्यूरो के निदेशक और विशेष निदेशक के बीच विवाद इस प्रतिष्ठित संस्थान की निष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचा रहा था. दोनों अधिकारी, आलोक कुमार वर्मा और राकेश अस्थाना एक-दूसरे से लड़ रहे थे और इससे जांच ब्यूरो की स्थिति हास्यास्पद हो रही थी.'
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इन दोनों अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई से सरकार अचम्भित थी कि ये क्या हो रहा है. वे बिल्लियों की तरह एक-दूसरे से लड़ रहे थे. वेणुगोपाल ने कहा कि दोनों के बीच चल रही इस लड़ाई ने अभूतपूर्व और असाधारण स्थिति पैदा कर दी थी. ऐसी स्थिति में सरकार का दखल देना जरूरी हो गया था.
CBI case: AG KK Venugopal tells Supreme Court “The fight between Alok Verma and Rakesh Asthana was becoming critical & matter of public debate. Govt of India was watching with amazement as to what the top officers were doing, they were fighting like cats."
— ANI (@ANI) December 5, 2018
उन्होंने कहा कि केंद्र ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए ही इस साल जुलाई और अक्टूबर में मिली शिकायतों पर कार्रवाई की थी. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने ऐसा नहीं किया होता तो पता नहीं दोनों अधिकारियों के बीच लड़ाई कहां और कैसे खत्म होती.
अटार्नी जनरल ने केंद्र की ओर से बहस पूरी कर ली. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की ओर से बहस शुरू की जो गुरुवार को भी जारी रहेगी. केंद्र ने आलोक वर्मा के खिलाफ अस्थाना की शिकायत पर सीवीसी की रिपोर्ट का अवलोकन किया था जिसमें कुछ सिफारिशें की गई थीं. इसके बाद ही दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा गया था.
महाधिवक्ता ने ये बातें पिछली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस. नरीमन, कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और राजीव धवन के आरोपों के जवाब में कहा, जिन्होंने 29 नवंबर को पिछली सुनवाई में वर्मा की शक्तियां छीनने के सरकार की कार्रवाई की कानूनी वैधता पर सवाल उठाया था.
अदालत ने तब कहा था कि वह सुनवाई इस पर सीमित करेगी कि क्या सरकार के पास बिना चयन समिति की सहमति के सीबीआई प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है या नहीं. इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं. नरीमन वर्मा की तरफ से उपस्थित हुए थे.
बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर आलोक वर्मा का दो साल का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को खत्म हो रहा है.