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राजनीति के दिग्गजों के बीच अरुण जेटली हमेशा 'स्कॉलर मिनिस्टर' के तौर पर जाने जाते थे। हर किसी के लिए वह समस्याओं का हल थे और उनका यह रवैया दलीय सीमा से परे था। स्वभाव से विनम्र, बुद्धि से तीक्ष्ण अरुण जेटली रणनीति के माहिर थे और उनकी तर्क और विश्लेषण क्षमता ऐसी थी कि हर मुश्किल का वे जवाब थे और उनका हर जवाब समस्याओं का हल था। खासतौर पर पीएम नरेंद्र मोदी के लिए वे बेहद अहम मौकों पर संकटमोचक बनकर उभरे। शायद यही वजह थी कि एक बार उन्होंने अरुण जेटली को 'अनमोल हीरा' करार दिया था। हालांकि 4 दशक के उनके सुनहरे राजनीतिक करियर पर खराब सेहत के चलते विराम लग गया।

66 वर्षीय अरुण जेटली ने खुद ही पीएम नरेंद्र मोदी से दूसरे कार्यकाल में सरकार से दूर रखने की अपील की थी। लेकिन, पहले कार्यकाल और उससे पहले वह उनके लिए हमेशा से संकटमोचक रहे। जीएसटी पर उन्होंने जिस तरह से तमाम राज्यों के वित्त मंत्रियों को राजी किया, वह आसान नहीं था।

पीएम नरेंद्र मोदी के 'चाणक्य' कहे जाने वाले अरुण जेटली 2002 से ही उनके संकटमोचक की भूमिका रहे। यह वह दौर था, जब गुजरात के दंगे सीएम के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी के लिए परेशानी का सबब बन चुके थे।

नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि आज के गृह मंत्री अमित शाह के लिए भी जेटली एक दौर में संकटमोचक साबित हुए। तत्कालीन यूपीए सरकार के दौर में अमित शाह को गुजरात से बाहर कर दिया गया था, कानूनी पेचिदगियों में उलझे शाह को तब जेटली ने ही मदद की थी। उस दौर में अकसर अमित शाह जेटली के कैलाश कॉलोनी स्थित ऑफिस में ही दिखते थे और हफ्ते में कई दिन साथ में ही भोजन करते थे।

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यही नहीं नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनाव के लिए जब पीएम कैंडिजेट घोषित किया गया था तो पार्टी के भीतर असहमतियों को थामने के लिए जेटली कई महीने तक पर्दे के पीछे ऐक्टिव रहे। कहा जाता है कि राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी जैसे बड़े नेताओं को उन्होंने ही मोदी के नाम पर राजी करने का काम किया।

पेशे से वकील अरुण जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रहे थे, लेकिन मोदी सरकार में उन्हें वित्त और रक्षा मंत्रालय कई महीनों तक एक साथ संभालने पड़े। शायद इसकी वजह पीएम मोदी का उन पर अटूट भरोसा था।

मनोहर पर पर्रिकर की सेहत बिगड़ी तो अरुण जेटली को रक्षा मंत्रालय भी दिया गया। दिल्ली की सत्ता के गलियारे में लंबे समय से पैठ रखने वाले अरुण जेटली 1990 के दशक से ही पीएम नरेंद्र मोदी के करीब थे।

दिल्ली में पीएम मोदी के करीबी लोगों में से जेटली ही थे। फिर यह साथ ऐसा बढ़ा कि 2002 के दंगों के बाद कानूनी मदद हो या फिर संसद में हर विपक्षा सवाल का जवाब जेटली हमेशा मोदी और सरकार के लिए कवच की तरह रहे।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।