जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के 'पिछले आचरण' को देखते हुये ही उन्हें जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद किया गया है और अगर उन्हें रिहा किया गया तो इस आचरण को पुन: दोहराने की संभावना है जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिये हानिकारक हो सकती है।
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म करने के फैसले का अब्दुल्ला को काफी मुखर आलोचक बताया और दावा किया कि उनके कृत्य पूरी तरह से लोक व्यवस्था के दायरे में आते हैं क्योंकि इसका मकसद सार्वजनिक शांति और सद्भाव को भंग करना था।
श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट ने उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका पर दाखिल अपने जवाब में यह दावा किया है। सारा ने उमर की पीएसए के तहत नजरबंदी को चुनौती दी रखी है। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 का बना रहना हमेशा ही विवादास्पद और ज्वलंत मुद्दा बना रहा है। प्रशासन ने कहा कि अब्दुल्ला को शीर्ष अदालत में आने से पहले राहत के लिये जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय जाना चाहिए था।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने सोमवार को सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पांच मार्च के लिये सूचीबद्ध करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो इस पर अपना जवाब दाखिल कर सकती हैं।सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से जवाब दाखिल करेंगे।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के एक फैसले का हवाला दिया और कहा कि नजरबंदी के मामले में याचिकाकर्ता को पहले उच्च न्यायालय जाना चाहिए। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अपने जवाब में कहा है कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में किसी प्रकार का व्यवधान डालने की कार्रवाई से रोकने के लिये नजरबंदी की आवश्यकता जरूरी महसूस करते हुये ही उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून की धारा 8 के तहत नजरबंद करने का आदेश दिया गया है।
प्रशासन ने सारा अब्दुल्ला की इस दलील का भी जवाब दिया है कि उनका भाई पहले ही पिछले साल पांच अगस्त से हिरासत में है और अब उसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में किसी प्रकार की बाधा डालने की संभावना के नतीजे पर पहुंचकर नजरबंद रखने का कोई आधार नहीं है। प्रशासन ने कहा कि याचिका में दी गयी यह दलील गलत है और नजरबंद करने वाले प्राधिकारी के संतुष्ट होने के पहलू को नजरअंदाज करती है। उनके बारे में पेश डोजियर से साफ पता चलता है कि अतीत में हुयी घटनाओं में उनका सामीप्य था।
जवाब में यह भी कहा गया है कि पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य में 1990 से 71,038 घटनाओं में 41,866 व्यक्तियों की जान गयी थी। इसमें 14,038 नागरिक, 5,292 सुरक्षा बल के सदस्य और 22,536 आतंकवादी मारे गये।
प्रशासन ने कहा कि जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के पास इस समय 350 से अधिक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकायें दायर हैं जिनमें नजरबंदी के आदेशों को चुनौती दी गयी है। प्रशासन ने कहा है कि उच्च न्यायालय पूरी तरह से काम कर रहा है और उसने अगस्त 2019 से नजरबंदी के 68 आदेश रद्द किये हैं जबकि नजरबंदी के 11 आदेशों की ही पुष्टि की है।
प्रशासन ने कहा कि याचिकाकर्ता यह बताने में विफल रही हैं कि वह पहले उच्च न्यायालय क्यों नहीं गयीं। प्रशासन ने यह याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुये न्यायालय से कहा है कि इस पर विचार करने से बगैर किसी विशेष वजह के ही यहां ऐसी याचिकाओं का अंबार लग जायेगा।
सारा अब्दुल्ला पायलट ने अपनी याचिका में कहा है कि उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी का आदेश गैरकानूनी हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने में उनके भाई से किसी प्रकार का खतरा होने का सवाल ही नहीं है।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.