ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये केन्द्र द्वारा उठाये गये 'अति सक्रिय कदमों' पर सोमवार को संतोष व्यक्त किया और कहा कि उसके आलोचक भी इन प्रयासों की सराहना कर रहे हैं।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा, ''हम संतुष्ट हैं कि सरकार मौजूदा स्थिति से निपटने के लिये बहुत सक्रिय हो गयी है और उसके आलोचक भी कह रहे हैं कि वे (सरकार) अच्छा काम कर रहे हैं। ये राजनीति नहीं बल्कि हकीकत है।''
शीर्ष अदालत में दायर एक याचिका में कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये सार्वजनिक स्थलों पर थर्मल स्क्रीनिंग की बेहतर व्यवस्था करने, कोविड-19 के संदिग्ध मामलों की जांच के लिये प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाने के साथ ही संदिग्ध व्यक्तियों को अलग रखने वाले केन्द्रों और ग्रामीण इलाकों में अस्थाई अस्पतालों के बिस्तरों की संख्या बढ़ाने जैसे एहतियाती उपाय करने का संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
याचिकाकर्ताओं में से एक याचिकाकर्ता पत्रकार प्रशांत टंडन और सामाजिक कार्यकर्ता कुंजन सिंह ने कोरोना वायरस महामारी से उत्पन्न स्थिति से निपटने तथा संदिग्ध व्यक्तियों को अलग रखने के लिये बने केन्द्रों की संख्या बढ़ाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इस संबंध में सरकार के पास अपना प्रतिवेदन दें। इस बीच, पीठ के समक्ष एक मामले का उल्लेख करते हुये अनुरोध किया गया कि सभी धार्मिक स्थलों के द्वार बंद करने का निर्देश दिया जाये ताकि इस वायरस को फैलने से रोकने के लिये लोगों के बीच सामाजिक दूरी सुनिश्चित की जा सके।
पीठ ने कहा, ''हम इस तरह का कोई आदेश नहीं दे सकते जिसे लागू नहीं किया जा सके। हम राज्यों से कहेंगे कि वे आपकी याचिका पर एक प्रतिवेदन के रूप में विचार करें।''
अधिवक्ता आशिमा मंडला के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि कार्य स्थलों , मेट्रो स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों, स्कूलों और कालेज जैसे सार्वजनिक स्थानों पर लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग कराने की आवश्यकता है जिनमें हो सकता है कि कोविड-19 के लक्षण नजर आ जायें।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.