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सांकेतिक तस्वीरReuters file

सरकार ने एफडीआई वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए संशोधित नियमों को लागू करने की एक फरवरी की समयसीमा को बढ़ाने से मना कर दिया है. इससे अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है.

सरकार ने साफ कर दिया है कि इन ई-कॉमर्स कंपनियों को विदेशी निवेश के नियमों का पालन करना ही होगा. सरकार ने पिछले महीने ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश के नियमों पर सफाई जारी की थी. सफाई में कहा था कि विदेशी निवेश लेने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म यानि वेबसाइट पर अपनी ही ग्रुप की कंपनियों या सहयोगी कंपनियों के सामान बेचने की इजाजत नहीं होगी.

फिलहाल अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियां जो सामान अपनी वेबसाइट पर बेचती हैं उसमें उनकी सहयोगी कंपनियों की ओर से सप्लाई किए जाने वाले प्रोडक्ट भी होते हैं. कई बार इसकी वजह से भी कीमतों को प्रभावित कर सस्ता सामान बेचा जाता है. विदेशी निवेश लेने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों की दलील थी कि उनकी सहयोगी कंपनियों के पास करीब 6 हज़ार करोड़ रुपये का माल है जिसकी एक महीने में ही बिक्री कर पाना संभव नहीं होगा. इसकी वजह से उन्हें भारी घाटा उठाना पड़ेगा. इसलिए सरकार नियमों को लागू करने की समय सीमा 6 महीने बढ़ाए. लेकिन सरकार ने इस दलील को नकार दिया.

उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उसे एक फरवरी की समयसीमा को आगे बढ़ाने के लिए कई ज्ञापन मिले थे. इनमें ई-कॉमर्स में एफडीआई नीति पर 2018 की सीरीज के प्रेस नोट 2 की शर्तों के अनुपालन की समयसीमा बढ़ाने का आग्रह किया गया था.

बयान में कहा गया कि गहन विचार विमर्श के बाद सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी से इस समयसीमा को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया गया है. एमेजॉन और वॉलमार्ट, दोनों ने इस एक फरवरी की समयसीमा को बढ़ाने की मांग करते हुए कहा था कि इस नई रूपरेखा को समझने के लिए उन्हें और समय की जरूरत है.

एमेजॉन ने संशोधित नियमों को लागू करने के लिए जहां एक जून तक समय मांगा था, वहीं फ्लिपकार्ट ने छह महीने का समय मांगा था.

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अब ई-कॉमर्स कंपनियों की मैन्यूफैक्चरर्स के साथ होने वाली एक्सक्लूसिव प्रोडक्ट लॉन्च या सेल की डील भी नहीं हो सकेगी, क्योंकि नए नियमों में इसकी मनाही है. मुमकिन है कि ई-कॉमर्स कंपनियां कोई और रास्ता निकलता न देख या तो सप्लायर्स को सामान वापस लौटाएं या फिर भारी डिस्काउंट पर बिक्री कर स्टॉक खत्म करें. सरकार ने 26 दिसंबर को सफाई जारी कर ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए सख्ती बढ़ा दी थी. घरेलू कारोबारियों का आरोप था कि ई-कॉमर्स कंपनियां विदेशी फंडिंग के दाम पर भारी डिस्काउंट देती हैं. साथ ही सप्लायर्स पर भी दबाव बनाकर कीमतों को प्रभावित करती हैं जिससे छोटे कारोबारियों की आमदनी घट रही है.

इससे पहले सरकार ने 26 दिसंबर 2018 को ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियम कड़े करते हुए फ्लिपकार्ट और एमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों पर उन फर्मों के उत्पादों की बिक्री पर रोक लगा दी थी जिनमें इन ई-कॉमर्स कंपनियों की हिस्सेदारी है. इसके अलावा ई-कॉमर्स कंपनियों पर उत्पादों की एक्सक्लूसिव बिक्री के लिए करार करने पर भी रोक लगाई गई है.

संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, कोई वेंडर उसी मार्केटप्लेस की समूह की कंपनियों से 25 प्रतिशत से अधिक की खरीद नहीं कर सकता, जहां से उसे उन उत्पादों की बिक्री करनी है. व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सरकार से आग्रह किया था कि इन बदलावों को लागू करने की समयसीमा न बढ़ाई जाए.