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नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शनों से बीजेपी में कई को हैरानी जरूर हुई है। हालांकि उनका मानना है कि इस विवादित कानून को लागू करने से पार्टी को फायदा ही ज्यादा होगा, नुकसान कम। बीजेपी को इस मुद्दे पर थोड़े बहुत विरोध का अंदाजा तो पहले से रहा होगा लेकिन यह इतने बड़े पैमाने पर होगा, इसका शायद अंदाजा नहीं था।

पूर्वोत्तर में बीजेपी का एकछत्र राज है। असम में उसकी सरकार है ही। पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी या तो उसी की सरकार है या किसी क्षेत्रीय पार्टी के जूनियर पार्टनर के तौर पर वह सत्ता में साझेदार है। पार्टी नेताओं को लगता है कि वे हालात को संभालने की स्थति में हैं और विरोध को थाम लेंगे लेकिन साथ में यह चिंता भी है, खासकर असम में कि कहीं जनाक्रोश सियासी लिहाज से महंगा न पड़ जाए।

लंबे वक्त से बांग्लादेश की तरफ से अवैध घुसपैठ की समस्या से जूझते रहे असम में हिंदुओं की एकजुटता की वजह से बीजेपी 2016 में पहली बार सत्ता में आई। असमी अस्मिता और मूल असमी पहचान की चिंताओं को लेकर चल रहा मौजूदा विरोध-प्रदर्शन मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को भी बदल देने का माद्दा रखता है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में स्थिति जुदा है। वहां बीजेपी को फायदे की उम्मीद दिख रही है। इसकी वजह यह है कि सूबे में इस नए कानून से जिन लोगों को फायदा पहुंचेगा, उनकी तादाद काफी बड़ी है।

पश्चिम बंगाल बीजेपी के चीफ दिलीप घोष का दावा है कि सूबे में ऐसे लोगों की तादाद करीब 2 करोड़ है, जिन्हें नए नागरिकता कानून से फायदा मिलने वाला है। घोष पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो टीएमसी की अध्यक्ष भी हैं, पर आरोप लगा रहे हैं कि वह बिल के खिलाफ राज्य में अशांति फैलाना चाहती हैं क्योंकि उन्हें 'सत्ता' खोने का डर है।

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असम और पश्चिम बंगाल दोनों ही राज्यों में अप्रैल-मई 2021 में तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं। नए कानून के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार हुए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के ऐसे लोग जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके हैं, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

ऐसे लोगों को बीजेपी शरणार्थी कहती है, जबकि दूसरे देशों से आए मुस्लिम प्रवासियों को न सिर्फ घुसपैठिया कहती है बल्कि उन्हें 'दीमक' के तौर पर बताने की कोशिश करती है। ये शरणार्थी ज्यादातर या तो असम में रह रहे हैं या फिर पश्चिम बंगाल में। असम के एक सीनियर बीजेपी नेता ने बताया कि सूबे में जारी विरोध प्रदर्शन के पीछे लोगों की दशकों पुरानी वह चिंता है कि 'बाहरी' उनका हक मार रहे हैं। बीजेपी नेता ने मौजूदा संकट के जल्द खत्म होने की उम्मीद जताते हुए कहा, 'कुछ चिंताएं वाजिब भी हैं। लेकिन सूबे के लिए इससे अच्छा कोई अन्य कानून नहीं हो सकता था।'

बीजेपी नेता ने आगे कहा कि कांग्रेस और असम गण परिषद की सूबे में लंबे वक्त तक सरकार रही लेकिन दोनों ही पार्टियां अवैध प्रवासियों को सूबे से बाहर करने करने के लिए असम समझौते को लागू करने के अपने वादे को पूरा करने में नाकाम रही। उन्होंने कहा कि बीजेपी अपने वादों को अमलीजामा पहनाने का काम कर रही है। बीजेपी नेता ने साथ में यह भी कहा कि नागरिकता कानून के साथ-साथ नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) पार्टी के मैनिफेस्टो में भी शामिल थे।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.