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पीएम मोदी का स्वागत सैकड़ों बोडो लड़कियों ने पारंपरिक 'बागुरुम्बा' नृत्य के साथ किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार, 7 जनवरी को असम के कोकराझार में हाल ही में हस्ताक्षरित बोडो समझौते से जुड़े एक समारोह में भाग लेने पहुंचे। देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू होने और असम में एनआरसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम में अपनी पहली रैली को भी संबोधित किया।

गुवाहाटी से लगभग 216 किलोमीटर दूर, बोडो समझौते पर 27 जनवरी को हुए हस्ताक्षर का जश्न मनाने के लिए आयोजित हुई एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि बोडो समझौते पर हस्ताक्षर एक ऐतिहासिक समझौता है जो क्षेत्र में शांति लाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि इस क्षेत्र में उग्रवाद दशकों से चरम पर था और हजारों लोगों की जान ले चुका था, लेकिन पिछली सरकारें समस्याओं के समाधान को लेकर अनिच्छुक थीं।

इससे पूर्व पीएम मोदी का स्वागत सैकड़ों बोडो लड़कियों ने पारंपरिक 'बागुरुम्बा' नृत्य के साथ किया। बीटीएडी (बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्स) जिलों- कोकराझार, बक्सा, उदलगुड़ी और चिरांग और पूरे असम के चार लाख से अधिक लोगों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। इसमें राज्य के जातीय समूहों का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल है।

इस दौरान पीएम मोदी ने एक बार फिर राहुल गांधी के डंडे वाले बयान का जिक्र किया और कहा कि उनके पास डंडे से बचने के लिए मां-बहनों का आशीर्वाद है। साथ ही पीएम मोदी ने बोडो समझौते के लिए वहां के लोगों को धन्यवाद दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ लोग एनआरसी, सीएए को लेकर भ्रम फैला रहे हैं लेकिन नॉर्थ-ईस्‍ट के लोगों से कहना चाहता हूं कि वे देश विरोधी ताकतों पर भरोसा न करें। उन्‍होंने कहा कि असम शांति समझौता नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के लिए 21वीं सदी में एक नई शुरुआत है।

कोकराझार में जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'आज जो उत्साह, जो उमंग मैं आपके चेहरे पर देख रहा हूं, वो यहां के आरोनाई और डोखोना के रंगारंग माहौल से भी अधिक संतोष देने वाला है। आजादी के बाद यह सबसे बड़ी राजनीतिक रैली है। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी रैली नहीं देखी।' पीएम मोदी ने कहा कि आज का दिन उन हज़ारों शहीदों को याद करने का है, जिन्होंने देश के लिए अपने कर्तव्य पथ पर जीवन बलिदान किया। असम में अब कोई हिंसा नहीं होगी।

प्रधानमंत्री ने कहा, 'आज का दिन असम सहित पूरे नॉर्थ-ईस्ट के लिए 21वीं सदी में एक नई शुरुआत, एक नए सवेरे का, नई प्रेरणा को वेलकम करने का है। अब असम में अनेक साथियों ने शांति और अहिंसा का मार्ग स्वीकार करने के साथ ही, लोकतंत्र को स्वीकार किया है, भारत के संविधान को स्वीकार किया है। मैं बोडो लैंड मूवमेंट का हिस्सा रहे सभी लोगों का राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने पर स्वागत करता हूं। पांच दशक बाद पूरे सौहार्द के साथ बोडो लैंड मूवमेंट से जुड़े हर साथी की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को सम्मान मिला है।

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Twitter / @ANI

पीएम मोदी ने कहा, 'अब केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो आंदोलन से जुड़े संगठनों ने जिस ऐतिहासिक अकॉर्डपर सहमति जताई है, जिस पर साइन किया है, उसके बाद अब कोई मांग नहीं बची है और अब विकास ही पहली प्राथमिकता है और आखिरी भी। इस अकॉर्ड का लाभ बोडो जनजाति के साथियों के साथ ही दूसरे समाज के लोगों को भी होगा। क्योंकि इस समझौते के तहत बोडो टैरिटोरियल काउंसिल के अधिकारों का दायरा बढ़ाया गया है, अधिक सशक्त किया गया है।

उन्‍होंने कहा, 'अकॉर्ड के तहत बी बीटीएडी में आने वाले क्षेत्र की सीमा तय करने के लिए कमीशन भी बनाया जाएगा। इस क्षेत्र को 1500 करोड़ रुपए का स्पेशल डिवलपमेंट पैकेज मिलेगा, जिसका बहुत बड़ा लाभ कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ि जैसे जिलों को मिलेगा। अब सरकार का प्रयास है कि असम अकॉर्ड की धारा-6 को भी जल्द से जल्द लागू किया जाए। मैं असम के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि इस मामले से जुड़ी कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद केंद्र सरकार और त्वरित गति से कार्रवाई करेगी।'

पीएम मोदी ने कहा, 'जिस नॉर्थ-ईस्ट में हिंसा की वजह से हजारों लोग अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए थे, अब यहां उन लोगों को पूरे सम्मान और मर्यादा के साथ बसने की नई सुविधाएं दी जा रही हैं। हमने नॉर्थ-ईस्ट के अलग-अलग क्षेत्रों के भावनात्मक पहलू को समझा, उनकी उम्मीदों को समझा, यहां रह रहे लोगों से बहुत अपनत्व के साथ, उन्हें अपना मानते हुए संवाद कायम किया। पहले नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों को दिल्ली से बहुत दूर समझा जाता था, आज दिल्ली आपके दरवाजे पर आई है।'

प्रधानमंत्री ने कहा, 'मैं आज असम के हर साथी को ये आश्वस्त करने आया हूं, कि असम विरोधी, देश विरोधी हर मानसिकता को, इसके समर्थकों को, देश न बर्दाश्त करेगा, न माफ करेगा। यही ताकतें हैं जो पूरी ताकत से असम और नॉर्थ-ईस्ट में भी अफवाहें फैला रही हैं कि सीएए से यहां, बाहर के लोग आ जाएंगे, बाहर से लोग आकर बस जाएंगे। मैं असम के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि ऐसा भी कुछ नहीं होगा।'

बोडो समझौते पर हस्ताक्षर 27 जनवरी को सरकार द्वारा नैशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के चार धड़ों, आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और एक नागरिक समाज समूह के साथ किया गया था। इसका उद्देश्य असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में दीर्घकालिक शांति लाना है।

प्रधानमंत्री ने हाल के एक ट्वीट में हस्ताक्षर वाले दिन को 'भारत का एक बहुत खास दिन बताया था' और कहा था कि यह बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम लाएगा। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिनों में एनडीएफबी के विभिन्न धड़ों के 1615 से अधिक सदस्यों ने अपने हथियार सौंप दिये थे और मुख्यधारा में शामिल हो गए थे।

मोदी ने 26 जनवरी को 'मन की बात' कार्यक्रम में अपील की थी कि जो भी हिंसा के मार्ग पर हैं वे मुख्यधारा में लौट आयें और अपने हथियार डाल दें। मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच एक शिखर बैठक पिछले साल दिसंबर में गुवाहाटी में होनी थी लेकिन सीएए विरोधी प्रदर्शनों के चलते उसे रद्द कर दिया गया था। मोदी को हाल में गुवाहाटी में सम्पन्न 'खेलो इंडिया' खेलों के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन वह उसमें शामिल नहीं हुए।

क्या है बोडो विवाद

बोडो असम का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5 से 6 प्रतिशत है। लंबे समय तक असम के बड़े हिस्से पर बोडो आदिवासियों का नियंत्रण रहा है। असम के चार जिलों कोकराझार, बाक्सा, उदालगुरी और चिरांग को मिलाकर बोडो टेरिटोरिअल एरिया डिस्ट्रिक्ट का गठन किया गया है। बोडो लोगों ने वर्ष 1966-67 में राजनीतिक समूह प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम के बैनर तले अलग राज्य बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। यह विरोध इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत एनडीएफबी को गैर कानूनी घोषित कर दिया।

साल 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन ने एक बार फिर से बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। यूनियन के नेता उपेंद्र नाथ ब्रह्मा ने उस समय असम को 50-50 में बांटने की मांग की। दरअसल, यह विवाद असम आंदोलन (1979-85) का परिणाम था जो असम समझौते के बाद शुरू हुआ। असम समझौते में असम के लोगों के हितों के संरक्षण की बात कही गई थी। दिसंबर 2014 में अलगाववादियों ने कोकराझार और सोनितपुर में 30 लोगों की हत्या कर दी। इससे पहले वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम दंगों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख लोग विस्थापित हो गए थे।