अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर मुस्लिम पक्ष दोफाड़ नजर आ रहा है। एक तरफ रविवार दोपहर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शीर्ष अदालत के फैसले में खामियां बताकर रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की बात कही तो दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने ऐसा करने से इनकार किया है।
बता दें कि इस मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ही मुस्लिमों की ओर से मुख्य पक्षकार था और अदालत ने उसे ही जमीन का आवंटन किया है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड से पहले मामले के एक और अहम पक्षकार रहे हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी भी पुनर्विचार याचिका से इनकार कर चुके हैं। मुख्य पक्षकारों की ओर से ही इनकार किए जाने के बाद रिव्यू पिटिशन को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। पर्सनल लॉ बोर्ड के अलावा अहम मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की बात कही है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने फैसले के दिन ही कहा था कि वह इसे स्वीकार करेंगे और अब अपील नहीं करेंगे। एक बार फिर अपनी राय से अवगत कराते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के स्टैंड पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदालत के फैसले से पहले वह कहते थे कि वे कोर्ट के निर्णय को मानेंगे।
उन्होंने कहा कि जब बोर्ड पहले कहता था कि वह अदालत के फैसले को स्वीकार करेगा तो फिर अब अपील क्यों की जाएगी। हालांकि उन्होंने कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड अपनी ओर से रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकता है, लेकिन सुन्नी बोर्ड इससे इत्तेफाक नहीं रखता।
उन्होंने यह भी कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की 26 नवंबर को होने वाली मीटिंग में 5 एकड़ जमीन को स्वीकार करने के प्रस्ताव पर फैसला लिया जाएगा।
इसके अलावा मामले के मुख्य पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने कहा था, 'मेरी राय बोर्ड से अलग है और मैं चाहता हूं कि इस मुकाम पर अब मंदिर और मस्जिद का मसला खत्म होना चाहिए। अब रिव्यू का कोई मतलब नहीं है क्योंकि फैसला वही रहने वाला है। रिव्यू पिटिशन दाखिल करने से सिर्फ माहौल बिगड़ेगा।'
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.