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अगर आप अब तक देश के चुनाव पर नजर नहीं रख सके हैं और अब जानना चाहते हैं कि देश का मूड क्या है तो दिल्ली की सभी सात सीटों के आकलन से समझ सकते हैं। दिल्ली को राजनीतिक भारत का छोटा रूप या 'मिनी इंडिया' भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में हमेशा दिल्ली में पूरे भारत का प्रतिबिंब नजर आया है। दिल्ली देश के ऐसे इलाकों में से एक है, जहां आपको देश के सभी राज्यों, भाषाओं और समुदाय के लोग मिल जाएंगे।

दिल्ली और देश के लोकसभा चुनाव के नतीजों के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो आपको पता चलेगा कि दिल्ली के नतीजे भी देश के नतीजों से ही मिलते हुए रहे हैं। किसी भी लोकसभा चुनाव के नतीजों को उठाइए, उसका दिल्ली के नतीजों से मिलान कीजिए, और आपको देश के और दिल्ली के मूड में समानता नजर आ जाएगी।

आइए, 1977 के लोकसभा चुनाव से शुरू करते हैं, जब पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी दल ने सरकार बनाई थी। और 2014 तक के चुनाव की चर्चा करते हैं, जब किसी गैर-कांग्रेसी दल ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। दिल्ली में हर बार देश के मूड का प्रतिबिंब नजर आया है।

जून 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने देश पर आपातकाल लागू किया था, इसके बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से कांग्रेस विरोधी माहौल देश में दिखा। इस चुनाव में 542 लोकसभा सीटों में से 345 सीटें जनता पार्टी गठबंधन को मिलीं थीं और कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में देश की हवा दिल्ली में भी नजर आई और यहां की सभी सात सीटों पर जनता पार्टी की जीत हुई थी।

आजाद भारत के इतिहास में, पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी दल ने केंद्र में सरकार बनाई थी। लेकिन, यह सरकार बहुत दिनों तक टिक नहीं सकी और अगले चुनाव 1980 में ही हो गए। इस चुनाव में दिल्ली के नतीजे 1977 के चुनाव के मुकाबले बिल्कुल अलग थे। सभी सात सीटों पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी जीते थे। यहां भी दिल्ली और देश का मूड एक ही था। देश में कांग्रेस ने 353 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की थी।

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव तय समय से एक साल पहले ही हो गए थे। इस चुनाव में लोगों में इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर नाराजगी थी, जिसका सियासी फायदा उनके बेटे राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी को मिला। इस चुनाव में कांग्रेस ने 514 में से 402 सीटें जीती थी और एक बार फिर दिल्ली और देश के मूड में समानता दिखी। दिल्ली की सातों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी।

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इसके बाद 1989 में चुनाव हुए। इस चुनाव में फिर लोगों में कई कारणों से कांग्रेस के प्रति नाराजगी थी। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने सबसे ज्यादा 197 सीटें जीती थीं, लेकिन जनता दल (143) ने बीजेपी (85) और कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से सरकार बनाई। इस चुनाव में भी दिल्ली का मूड पूरे देश की तरह मिला-जुला ही नजर आया। यहां बीजेपी ने 4, कांग्रेस ने 2 और जनता दल ने एक सीट जीती थी।

1977 की जनता पार्टी सरकार की तरह ही 1989 में जनता दल सरकार लंबी नहीं चल सकी। पहले जनता दल में फूट की वजह से वीपी सिंह की सरकार गिर गई और बाद में कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद चंद्रशेखर सरकार भी गिर गई। इसके बाद 1991 में देश में एक बार फिर चुनाव हुए। इस चुनाव में दूसरे चरण के मतदान से पहले पूर्व पीएम राजीव गांधी पर जानलेवा हमला हुआ, जिसमें उनकी मौत हो गई। कांग्रेस ने एक बार फिर राजीव गांधी के नाम पर वोट मांगे, लेकिन इस बार 1984 जैसा चमत्कार नहीं हुआ। कांग्रेस ने 244 सीटें जीतीं और सरकार बनाने में कामयाब हुई। इस चुनाव में दिल्ली में बीजेपी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिलीं। यहां भी दिल्ली और देश का मूड एक ही था क्योंकि पूरे देश में बीजेपी को 120 सीटें मिली थी, जो तेजी से बढ़ती हुई पार्टी थी।

पांच साल के बाद 1996 के चुनाव में बीजेपी ने बढ़त बनाए रखते हुए 160 सीटें जीती और पहली बार देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी। इस चुनाव में दिल्ली में पांच सीटों पर बीजेपी जीती और 2 पर कांग्रेस, जो देश के मूड के जैसी ही वोटिंग थी। इसके बाद बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनाई, लेकिन यह सरकार महज 13 दिन ही चली। इसके बाद एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल कांग्रेस के बाहरी समर्थन से पीएम बने।

इसके बाद लोकसभा बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकी और 1998 में फिर से चुनाव हुए। इस चुनाव में बीजेपी ने 182 सीटें जीती। दिल्ली में बीजेपी ने 7 में से 6 सीटों पर कब्जा जमाया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, जो विश्वास प्रस्ताव में वोटिंग के दौरान एक वोट से गिर गई। क्योंकि कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था, इसलिए 1999 में फिर चुनाव हुए और बीजेपी को 180 सीटें मिलीं और एनडीए ने सरकार बनाई। यहां भी दिल्ली का मूड देश के मूड जैसा नजर आया और सभी सातों सीटों पर बीजेपी की जीत हुई।

इसके बाद 2004 और 2009 में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई और लगातार दो टर्म तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई। 2004 में बीजेपी को 1, कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली और 2009 में बीजेपी को 0 और कांग्रेस को 7 सीटें मिलीं। इन दोनों चुनावों में भी दिल्ली और देश में एक ही हवा थी।

2014 के चुनाव में बीजेपी को पहली बार बहुमत मिला। इस चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सीटों पर जीत दर्ज की। यहां भी देश और दिल्ली में मोदी लहर नजर आई।

अब 2019 का चुनाव सामने है। 6 चरण का चुनाव पूरा हो चुका है। रविवार को ही छठे चरण में दिल्ली में भी मतदान हुआ। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार भी दिल्ली और देश का मूड एक जैसा है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी आईएएनएस द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है। यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है।