आलोक वर्मा
आलोक वर्माIANS

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को सीबीआई के अधिकारियों के बीच जारी विवाद में केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सीवीसी के फैसले को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आलोक वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमिटी से सहमति लेनी चाहिए थी. जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है.

इस तरह से वर्मा अब दोबारा सीबीआई प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे. हालांकि वह बड़े पॉलिसी वाले फैसले नहीं ले सकेंगे. चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के कारण उनके लिखे फैसले को जस्टिस केएन जोसेफ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने पढ़ा.

अलोक वर्मा के वकील संजय हेगड़े ने फैसले के बाद कहा कि यह एक संस्था की जीत है, देश में न्याय की प्रक्रिया अच्छी चल रही है. न्याय प्रक्रिया के खिलाफ कोई जाता है तो सुप्रीम कोर्ट उसके लिए मौजूद है.

सीबीआई विवाद में एनजीओ की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकार और सीवीसी के आलोक वर्मा को पद से हटाने का फैसला रद्द कर दिया है. कोर्ट ने उनकी शक्तियां छीनने और छुट्टी पर भेजने के फैसले को अवैध ठहराया.'

भूषण ने बताया कि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार एक उच्चस्तरीय कमिटी, जिसमें नेता विपक्ष भी हों बनाए और 7 दिनों के अंदर कमिटी इस पर विचार करे. जब तक कमिटी मामला सुलझ नहीं लेती, तब तक वर्मा कोई महत्वपूर्ण फैसले नहीं लेंगे. उनकी अभी सारी शक्तियां फिर से बरकरार नहीं हुई हैं.

बता दें कि सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने पूर्व जॉइंट डायरेक्टर राकेश अस्थाना के साथ विवाद के चलते शक्तियां छीने जाने और छुट्टी पर भेजने के खिलाफ याचिका दायर की थी. अस्थाना और वर्मा के बीच करप्शन को लेकर छिड़ी जंग के सार्वजनिक होने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया था.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को मामले की सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा के अलावा एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से अर्जी दाखिल कर मामले की एसआईटी जांच की मांग की थी. साथ ही सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को चुनौती दी गई.

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सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सीवीसी से जवाब दाखिल करने को कहा था. सीवीसी ने दलील दी थी कि स्थिति विशेष परिस्थिति वाली थी, इसी कारण यह फैसला हुआ है. सीबीआई डायरेक्टर के वकील फली एस नरीमन ने दलील दी थी कि सीबीआई डायरेक्टर के मामले को व्यापक तौर पर देखा जाना चाहिए.

एनजीओ के वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि विनीत नारायण जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश जारी किया था उसके तहत पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की कमिटी होगी जो हाई पावर कमिटी होगी और सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति वही करेगी साथ ही उनकी मंजूरी से ही ट्रांसफर होगा.

वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में 23 अक्टूबर, 2018 को याचिका दाखिल कर तीन आदेशों को खारिज करने की मांग की थी. इनमें से एक आदेश केंद्रीय सतर्कता आयोग और दो केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने जारी किए थे. वर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि इस फैसले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है. वर्मा ने कहा था कि इन फैसलों में अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन किया गया.

केंद्र सरकार ने वर्मा और अस्थान के बीच विवाद के बाद दोनों को हटाते हुए संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को अंतरिम मुखिया बना दिया था.

क्या था विवाद
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच खींचतान पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई जब सीबीआई डायरेक्टर ने CVC के नेतृत्व वाले पांच सदस्यीय पैनल की बैठक में अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर प्रमोट किए जाने पर आपत्ति जताई.

वर्मा का मानना था कि अधिकारियों के इंडक्शन को लेकर उनके द्वारा की गई सिफारिश को अस्थाना ने बिगाड़ दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि स्टर्लिंग बायोटेक घोटाले में अस्थाना की भूमिका के कारण CBI भी घेरे में आ गई. हालांकि पैनल ने आपत्ति को खारिज करते हुए अस्थाना को प्रमोट कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी राकेश अस्थाना को क्लीन चिट दे दी.

12 जुलाई को जब आलोक वर्मा विदेश में थे, CVC ने सीबीआई में प्रमोशन को लेकर चर्चा करने के लिए मीटिंग बुलाई जिसमें अस्थाना को एजेंसी में नंबर 2 की हैसियत से बुलाया गया. इस पर वर्मा ने CVC को लिखा कि उन्होंने अपनी तरफ से मीटिंग में शामिल होने के लिए अस्थाना को अधिकृत नहीं किया है.

24 अगस्त को अस्थाना ने CVC और कैबिनेट सेक्रटरी को लिखा, जिसमें वर्मा, उनके करीबी अतिरिक्त निदेशक एके शर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार की डीटेल दी. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे कई आरोपियों को बचाने की कोशिश हुई. अस्थाना ने दावा किया कि हैदराबाद के व्यापारी सतीश बाबू सना ने मोइन कुरैशी केस से खुद को बचान के लिए आलोक वर्मा को 2 करोड़ रुपये की घूस दी.

अस्थाना ने फिर से CVC और कैबिनेट सेक्रटरी को लिखा और कहा कि वह पिछले महीने सना को गिरफ्तार करना चाहते थे लेकिन वर्मा ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने यह भी दावा किया कि फरवरी में जब उनकी टीम ने सना से पूछताछ की कोशिश की थी, तो वर्मा ने फोन कर रोक दिया.

उधर, वर्मा ने अस्थाना द्वारा जांच किए जा रहे कई महत्वपूर्ण मामले वापस लेकर एके शर्मा को सौंप दिया. इसमें दिल्ली सरकार के मामले, आईआरसीटीसी घोटाला, पी चिदंबरम और अन्य के खिलाफ जांच शामिल थी. अस्थाना के स्टाफ का भी तबादला कर दिया गया.

4 अक्टूबर को सीबीआई ने सना को पकड़ा और उसने अस्थाना के खिलाफ मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दे दिया. सना ने दावा किया कि 10 महीने में उसने अस्थाना को 3 करोड़ रुपये दिए हैं. 15 अक्टूबर को CBI ने सना से 3 करोड़ की घूस लेने के आरोप में अस्थाना के खिलाफ केस दर्ज किया.

इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआई को एजेंसी के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर यथापूर्व स्थिति को बनाए रखने का आदेश दिया और ट्रायल कोर्ट ने एक मिड लेवल अधिकारी देवेंद्र कुमार को घूस लेने के आरोप 7 दिन की रिमांड पर भेजा. 24 अक्टूबर को दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया.