प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फाईल फोटो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फाईल फोटो.रायटर्स

2019 के लोकसभा चुनावों में अब एक वर्ष का समय बचा है, और ऐसे में विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल की सभावनाओं को लेकर सर्वेक्षणों को आयोजित करने का दौर चल रहा है.

गुरुवार, 24 मई को बीजेपी और नरेंद्र मोदी के समर्थकों को एबीपी और सीएसडीएस द्वारा ''माड आॅफ द नेशन'' के शीर्षक से आयोजित किये गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के बाद खासा निराश होना पड़ा जिसके अनुसार 47 प्रतिशत भारतीय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केंद्र सरकार को सत्ता में एक और मौका देने लायक नहीं मानते.

हालांकि टाईम्स ग्रुप द्वारा आयोजित करवाये गए एक और आॅनलाइन सवेक्षण ने, कर्नाटक के विधानसभा चुनावों की हार के घावों को सहला रहे भगवा दल के समर्थकों के चेहरे दोबारा खिला दिये, जिसके अनुसार 79.1 प्रतिशत भारतीय 2019 के चुनावों में पीएम उम्मीदवार के रूप में एक बार फिर नरेंद्र मोदी को चुनना पसंद करेंगे.

यह नतीजे वास्तव में शनिवार, 26 मई को अपने कार्यकाल के चार वर्ष पूरे करने वाली मोदी सरकार के लिये हौसला बढ़ाने वाले माने जा रहे हैं.

इस सर्वेक्षण के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित रहेः

  • ''पल्स आॅफ द नेशन'' के शीर्षक से किये गए इस सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 844,646 प्रतिभागियों में से 73.3 प्रतिशत ने कहा कि चुनाव के बाद मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने की सबसे अधिक संभावना है.
  • टाईम्स ग्रुप के नौ मीडिया संस्थानों द्वारा 23 मई से 25 मई के बीच नौ भाषाओं में आयोजित करवाए गए इन आॅनलाईन सर्वेक्षणों में निष्कर्ष सामने आया कि 16.1 प्रतिशत प्रतिभागी मोदी और राहुल को वोट न देकर किसी अन्य को चुनेंगे जबकि 11.93 प्रतिशत का कहना था कि वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुनेंगे.
  • इसके अलावा इव सर्वेक्षण में भाग लेने वाले लोगों से एनडीए सरकार के बीते चार सालों के कार्यकाल का मूल्यांकन करने को भी कहा गया. विकल्प थे 'बहुत अच्छे', 'अच्छे', 'औसत' और 'खराब'. एक तरफ जहां 47.4 प्रतिशत प्रतिभागियों ने इसे ''बहुत अच्छा' माना वहीं 20.6 प्रतिशत ने इसे 'अच्छा'. करीब 11.38 प्रतिशत प्रतिभागियों ने सरकार के कामकाज को 'औसत' माना जबकि बाकियों की नजरों में मोदी सरकार का बीते चार सालों का कार्यकाल 'खराब' रहा.
  • इसके अलावा प्रतिभागियों से मोदी सरकार द्वारा उठाये गए इकलौते नीतिगत निर्णय के लिये भी उनके वोट देने को कहा गया. 33.42 प्रतिशत प्रतिभागियों ने जीएसटी को लागू करने को अपनी शीर्ष पसंद माना जबकि 21.9 प्रतिशत ने नोटबंदी, 19.89 प्रतिशत ने पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राईक को और 9.7 प्रतिशत ने जनधन योजना को अपना मत दिया.
33.42 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना था कि जीएसटी का क्रियान्वयन उनकी श्रेष्ठ पसंद है. (तस्वीर मेंः 30 जून 2017 को भारत के मुुंबई में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के समर्थन में निकली रैली)
33.42 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना था कि जीएसटी का क्रियान्वयन उनकी श्रेष्ठ पसंद है. (तस्वीर मेंः 30 जून 2017 को भारत के मुुंबई में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के समर्थन में निकली रैली)रायटर्स
  • मोदी पर अक्सर युवाओं के लिये रोजगार के पर्याप्त अवसर न पैदा कर पाने का आरोप लगाया जाता है. एक आॅनलाईन सर्वेक्षण ने इस बात पर मोहर भी लगाई है जिसमें भाग लेने वाले 28.3 प्रतिशत वोटरों ने रोजगार के नए अवसर पैदा कर पाने में मोदी की नाकामी को उनकी सबसे बड़ी विफलता बताया है.
  • इसके अलावा भारत में अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति को लेकर मोदी सरकार पर सबसे अधिक हमले किये जाते हैं. हालांकि 59.41 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना था कि उन्हें ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि एनडीए सरकार के दौरान अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं. वहीं दूसरी तरफ 30.01 प्रतिशत का मानना था कि अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस करते हैं और 10.58 प्रतिशत का कहना था कि वे इस सवाल को लेकर कोई फैसला करने में असमर्थ हैं.
59.41 प्रतिशत प्रतिभागियों का कहना था कि उन्हें नहीं लगता कि एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं.
59.41 प्रतिशत प्रतिभागियों का कहना था कि उन्हें नहीं लगता कि एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं.रायटर्स
  • पूरे भारत के तमाम क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने भले ही कर्नाटक में कांग्रेस-जेडी(एस) गठबंधन को अपना समर्थन देने की नीयत से एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया, सर्वेक्षण के नतीजे कुछ और ही तस्वीर पेश करते हैं. 57.1 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि संयुक्त गैर-बीजेपी मोर्चा या गठबंधन अगले लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ प्रभावी नहीं रहेगा.
  • मोदी की सफलताओं और विफलताओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए 55 प्रतिशत वोटरों का मानना था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के 2014 में सत्ता में आने के बाद से उनके जीवन स्तर में सुधार आया है. हालांकि 33.92 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना था कि वे संतुष्ट नहीं हैं और 11.08 प्रतिशत वोटर कुछ भी कहने में असमर्थ थे.