केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों में उल्लेखित कदमों से अधिक कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन उन्हें कमजोर या हल्का नहीं कर सकते।
गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि गृह सचिव अजय भल्ला ने राज्यों को नये सिरे से पत्र लिखा है क्योंकि कुछ राज्य अपने दिशानिर्देश जारी कर रहे हैं जो लॉकडाउन को कमजोर करने के समान हैं और इससे नागरिकों की सेहत को लेकर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ''गृह मंत्रालय देश में लॉकडाउन के हालात पर नियमित नजर रख रहा है। जहां भी लॉकडाउन का उल्लंघन किया जा रहा है हम राज्य सरकारों के साथ तालमेल करते हुए उचित कार्रवाई कर रहे हैं।''
श्रीवास्तव ने कहा, ''कल गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को फिर से पत्र लिखा कि आपदा प्रबंधन कानून के तहत उसके द्वारा जारी दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करना है।''
उन्होंने कहा, ''राज्य अपनी स्थानीय स्थितियों के अनुसार और कड़े कदम उठा सकते हैं लेकिन उन्हें कमजोर या हल्का नहीं कर सकते।''
अधिकारी ने कहा कि यह पत्र लिखना अहम हो गया था क्योंकि कुछ राज्यों में ऐसी सुविधाओं की अनुमति दी जा रही है जिनकी गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत इजाजत नहीं है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने केरल सरकार को भी पत्र लिखा है और उसके द्वारा जारी निर्देशों को लेकर चिंता प्रकट की है।
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने रविवार को केरल के मुख्य सचिव टॉम जोस को भेजे पत्र में लॉकडाउन के कार्यान्वयन के लिए जारी समेकित संशोधित दिशानिर्देशों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट किया।
भल्ला ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय की एक टिप्पणी को भी रेखांकित किया कि सभी संबंधित राज्य सरकारें, सार्वजनिक प्राधिकरण और इस देश के नागरिक - केंद्र द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में जारी निर्देशों और आदेशों का पूरी तरह से पालन करेंगे।
श्रीवास्तव ने कहा कि केरल के आदेश में ऐसी कुछ चीजों का उल्लेख है जो आपदा प्रबंधन कानून के तहत जारी गृह मंत्रालय के निर्देशों का उल्लंघन करती हैं और लॉकडाउन को कमजोर करने के समान हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए अनुरोध किया गया है कि राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पालन होना चाहिए।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.