नौसेना में पुरुष और महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किए जाने पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार, 17 मार्च को नौसेना में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन को मंजूरी दे दी। बता दें, इससे पहले कुछ दिन पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का भी आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इंकार करने के 101 बहाने नहीं हो सकते और इनके लिये समान अवसर की जरूरत है। पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने पर न्याय को नुकसान होगा।
पीठ ने कहा कि केन्द्र द्वारा वैधानिक अवरोध हटा कर महिलाओं की भर्ती की अनुमति देने के बाद नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने में लैंगिक भेदभाव नहीं किया जा सकता। पीठ ने केन्द्र की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि नौसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को समुद्र में जाने की ड्यूटी नहीं दी जा सकती है क्योंकि रूस में निर्मित जहाजों में उनके लिये अलग से वाशरूम नहीं है।
पीठ ने कहा कि इस तरह की दलीलें केन्द्र की 1991 और 1998 की नीति के विपरीत है। इन्हीं नीति के तहत केन्द्र ने नौसेना में महिला अधिकारियों को शामिल करने पर लगी कानूनी पाबंदी हटा ली थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, ''जब एक बार महिला अधिकारियों की भर्ती के लिए वैधानिक अवरोध हटा दिया गया तो स्थायी कमीशन देने में पुरुष और महिलाओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।''
पीठ ने नीति के तहत 2008 से पहले नौसेना में शामिल की गयी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर पड़ने वाले प्रभाव को निरस्त कर दिया। पीठ ने सेवानिवृत्त हो चुकी उन महिला अधिकारियों को पेंशन का लाभ भी प्रदान किया जिन्हें स्थाई कमीशन नहीं दिया गया था। '
न्यायालय ने कहा कि ऐसे पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य हैं जिनसे पता चलता है कि नौसेना में महिला अधिकारियों ने सेना के लिये ढेरों उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
ता दें, फरवरी महीने में भारतीय सेना में महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि मानसिकता बदली होगी। कोर्ट ने कहा कि खा सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति एक विकासवादी प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन पर मुहर लगा दी।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, फिर भी केंद्र ने हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। हाईकोर्ट के फैसले पर कार्रवाई करने का कोई कारण या औचित्य नहीं है। कोर्ट के 9 साल के फैसले के बाद केंद्र 10 धाराओं के लिए नई नीति लेकर आया।
साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. यह मूल लेख का हिंदी अनुवाद है.